केंद्र में पीएम मोदी (PM Modi) ने नेतृत्व में एनडीए सरकार (Modi Govt) के 9 साल पूरे हो गए हैं। इस वर्षों में सरकार ने कई ऐसे मुकाम हासिल किए। ये फैसले नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार के लिए गेमचेंजर साबित हुए।
ऐसे में नजर डालते हैं मोदी सरकार (Modi Govt) के कुछ बड़े फैसलों को बारे में। कैसे इन फैसलों ने लोगों के बीच पीएम मोदी के साथ बीजेपी का लोगों के बीच भरोसा बढ़ाया। ऐसे में दो बार के कार्यकाल के बाद पीएम मोदी के सामने साल 2024 में आम चुनाव में हैट्रिक लगाने पर फोकस होगा।
सख्त फैसलों से बनी मजबूत सरकार की छवि
मोदी सरकार (Modi Govt) ने अपने दो साल के कार्यकाल कई बड़े फैसले किए। इन फैसलों से उनकी सरकार की छवि मजबूत बनाई। 2014 में सता में आने के बाद सरकार ने नियमित अंतराल पर साफ संदेश दिया कि वह किसी भी तरह के फैसले लेने में नहीं हिचकेगी। आम लोगों के बीच मोदी और उनकी सरकार की लोकप्रियता के पीछे ये सबसे अहम फैक्टर बना। इसकी शुरुआत पहले कार्यकाल में नोटबंदी का फैसला था। इसके बाद सरकार ने आतंकवादियों के ठिकानों पर हमला किया। कोरोना महामारी के दौरान सरकार ने सख्त लॉकडाउन का फैसला किया। लोगों ने सरकार के फैसले लेने की तरीकों को पसंद किया। सरकार ने जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाने जैसे फैसले भी किया। इससे साबित हुआ कि सरकार मजबूत फैसला लेने से पीछे नहीं हटेगी।
मन की बात से लोगों तक पहुंच
पीएम मोदी बीते 9 साल में लोगों से जुड़ने के लिए नई संवाद शैली अपनाई। साल 2014 से ही उन्होंने लोगों के बीच अधिक से अधिक पहुंचने की परंपरा शुरू की। 9 साल पूरा होने के बावजूद यह सिलसिला जारी। सरकार (Modi Govt) के 9 साल पूरा होने पर अब बीजेपी के नेता 51 रैलियां करेंगे। इनमें पीएम की भी कुछ रैलियां शामिल हैं। इन चीजों ने मोदी को ऐसा प्रतिनिधि बनाया जो उनके जैसा ही सोचता है, उनके सुख-दुख का ख्याल मन की बात रखता है। मन की बात जैसे कार्यक्रम भी आम लोगों से सीधे संवाद का नया जरिया बना।
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ग्लोबल पावर के रूप में छवि
2014 के बाद एक बड़ा फैक्टर जो सामने आया और जो पीएम मोदी की मजबूती और सरकार (Modi Govt) की लोकप्रियता का बड़ा कारण बना वह था ग्लोबल स्तर पर इस बात को स्थापित करना कि भारत की ताकत बढ़ी है। विदेशों की कोरोना में पूरी दुनिया में टीका भेजने पहल। इससे पीएम की ग्लोबल इमेज उभरी।
तमाम सर्वे में यह बात उभर कर आई कि मोदी सबसे ताकतवर ग्लोबल लीडर में से एक हैं। बड़ी बात यह है कि जो ग्लोबल इवेंट में पीएम मोदी की बड़ी रैलियों और कई अहम ग्लोबल इवेंट में भारत के दखल को देश की बढ़ती ताकत के रूप में पेश किया गया। चाहे यूक्रेन युद्ध के समय वहां फंसे भारतीय को वहां से लाना हो और कूटनीति देश की आम जन तक नहीं जाती थी उसे पीएम मोदी और BJP लोगों एक बीच ले जाने में सफल रहे। इन वर्षों में भारत की छवि एक ग्लोबल ताकत की बनी।
नोटबंदी, लॉकडाउन के फैसले को जनता का साथ
पिछले नौ वर्षों में जब भी मोदी सरकार (Modi Govt) संकट में आई तो उससे सफलतापूर्वक निकली। साल 2016 में नोटबंदी के फैसले की भले ही आलोचना हुई लेकिन इसके बावजूद तमाम चुनावों में बीजेपी को जीत मिली। इसी तरह कोरोना के दौरान पहली लहर में लॉकडाउन का दौर देखा। दूसरी लहर में लाखों लोगों की मौत में विपक्ष का हमलावर रुख भी झेला। इसके बावजूद मोदी सरकार जनता के बीच भरोसा बनाए रखने में कामयाब रही। संकटों के मौकों पर जनता से लगातार सीधा संवाद करने का सरकार को फायदा मिला।
राम मंदिर शिलान्यास से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक
2014 में सत्ता में आई मोदी सरकार (Modi Govt) सबसे बड़ी ताकत उनकी गवर्नेस में दौरान हिंदुत्व और राष्ट्रवाद का मेल देखने को मिला। 2014 से पहले हिंदुत्व देश की राजनीति का हिस्सा था। हालांकि राष्ट्रवाद एक समानांतर रूप से चलता था। 2016 में JNU में छात्र आंदोलन और उसके तुरंत बाद सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश में राष्ट्रवाद और हिंदुत्व का एक नया भावनात्मक मेल सामने आया। इसने पूरे देश की सियासत दल दी।
मजबूत धर्म और मजबूत देश, इन दोनों को एक दूसरे से जोड़ा और लोगों तक इसका संदेश देने में सफलता हासिल की। पिछले 9 वर्षों में मोदी सरकार की सियासी सफलता और उनकी कई नीतियों पर इस नए मिश्रण का प्रभाव दिखा। विपक्ष मोदी सरकार के इस नए फैक्टर का मुकाबला करने में अफसल साबित हुआ। ऐसे में BJP 2024 में लगातार तीसरी बार वापसी की के लिए जोर लगा रही है।
जब पीछे हटी मोदी सरकार
मोदी सरकार (Modi Govt) की पिछले 9 वर्षों की सबसे बड़ी खासियत समय रहते जरूरत के हिसाब से कदम पीछे खींचना भी रहा। मजबूत सरकार की छवि के साथ ही किसी फैसले का व्यापक विरोध पर सरकार दो कदम पीछे भी हुई। किसान आंदोलन इसका सबूत था। शुरू में सरकार ने पीछे हटने से साफ इनकार किया। हालांकि, जब साल भर आंदोलन चला तो सरकार झुकी। कानून वापस लिए।
2014 में सरकार बनने के तुरंत बाद जमीन अधिग्रहण बिल का विरोध हुआ विपक्ष ने सूट-बूट की सरकार बताया। तब ही न सिर्फ कानून को वापस लिया बल्कि गरीबों के लिए इतनी योजनाएं शुरू की कि वे उनका सबसे बड़ा सियासी आधार बन गए। उसी तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद SC/ST कानून में संशोधन किया। इस पर सवर्णों ने विरोध किया। इसके बाद केंद्र ने उनकी नाराजगी दूर करने के लिए 10% आरक्षण लेकर आया। 2017 में जब देश के अलग- अलग हिस्सों में दलितों पर हमले हुए और सरकार पर सवाल उठे, तो उसके बाद दलितों के लिए सरकार ने एक के बाद एक कई कदम उठाए। सरकार से जुड़े लोग बताते हैं कि पिछले वर्षों में फीडबैक तंत्र को जमीन से जोड़ा गया।
लोगों तक पहुंची योजनाएं
मोदी सरकार ने अपने ड्रीम प्रोजेक्ट या आमजन से जुड़ी महत्वाकांक्षी योजनाओं की तय सीमा के अंदर डिलिवरी दी। कुछ दूसरे मोर्चे पर काम की गति पर सवाल भी उठे। हालांकि, सरकार ने 9 वर्षों में आम लोगों के बीच अपनी डिलिवरी लोगों तक पहुंचाने के संदेश देने में सफल रही। इसकी शुरुआत 2016 में उज्जवला योजना से हुई थी। इसका परिणाम भी अगले 2017 के UP विधानसभा चुनाव में दिखा। एक्सप्रेस हाइवे से लेकर नई संसद या सेंट्रल विस्टा के निर्माण को पूरा कर ये संदेश दिया गया कि उनकी सरकार सिर्फ घोषणाएं नहीं करती हैं बल्कि उसे पूरा भी करती है। सरकार जनता के बीच ये धारणा बनाने में कुछ हद तक सफल भी रही कि उनकी सरकार ने जो वादे किए उसे पूरा करने के लिए उनका डिलिवरी सिस्टम भी दुरुस्त किया।
फ्री राशन से लेकर मुफ्त आवास की सुविधा
बीते नौ वर्षों के दौरान मोदी सरकार और बीजेपी ने गरीबों में एक बड़ा लाभार्थी वर्ग बनाया है। उज्जवला योजना, फ्री मकान से लेकर फ्री राशन जैसी योजनाओं के जरिये सरकार ने इस वर्ग तक अपनी मजबूत पकड़ बनाई। इन योजनाओं का फायदा ये हुआ कि सरकार के पास ऐसे 22 करोड़ परिवार की लिस्ट है, जिन्हें अलग-अलग रूप में ये सुविधाएं मिल रही हैं। 2019 में भी इस पर ही मोदी और शाह ने दांव खेला था। इन तक पहुंचने के लिए खास अभियान शुरू किया गया। कहा गया कि इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी ने ऐसा वर्ग बनाया, जो सरकार की योजनाओं की बदौलत वोट बैंक बना। सरकार इन पर पकड़ को लगातार बनाए रखने चाहती है। कार्यकाल के अंत में भी इस वर्ग तक पहुंच बढ़ाने के लिए सरकार की कोशिश दिख सकती है।
भ्रष्ट्राचार के मुद्दे पर विपक्ष बेअसर
पिछले 9 साल के दौरान मोदी खुद अपनी सरकार को करप्शन के बड़े आरोपों से मुक्त रखने में कामयाब रहे। हालांकि विपक्षी दलों ने इन वर्षों में अलग-अलग मुद्दों पर करप्शन के गंभीर लगाए। तक उन मुद्दों को पहुंचाने की कोशिश भी की पर कामयाबी नहीं मिली। 2019 चुनाव में राहुल गांधी ने राफेल के मुद्दे पर PM पर करप्शन का आरोप लगाकर ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगाया। पूरे चुनाव में इस मुद्दे को ही केंद्र में रखा। हालांकि, चुनाव परिणाम के बाद आए डेटा ने साबित किया कि मोदी पर यह लगा यह आरोप जनता के बीच नहीं टिका मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार लोगों के बीच खुद को आरोप मुक्त बताने में कामयाब रही। विपक्ष को भी 9 वर्षों बाद इसका अहसास हुआ और मोदी पर सीधा आरोप लगाने के बजाय महंगाई, बेरोजगारी के सहारे चुनाव लड़ना चाहिए।