छठ पूजा 2024 : जानिए पारंपरिक व्रत का महत्व और विधि

सुबह की पहली किरण दिखने पर आस-पड़ोस में खुशी फैल जाती है. पूर्वी भारत के कुछ राज्यों में छठ पूजा मनाई जाती है. इसमें लोग सूर्य देव और छठी मैया की कृपा की प्रार्थना करते हैं. यह हिंदू त्योहार बहुत पवित्र है. इसमें भक्त निर्जला व्रत रखकर सूर्य देव की पूजा करते हैं.

छठ पूजा भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह सूर्य देव की पूजा का समय है. लोग वर्षों से चली आ रही परंपराओं का पालन करते हैं. आज पूरे देश में छठ पूजा का महापर्व मनाया जा रहा है. गीत-संगीत और पूजा-पाठ भी होते हैं.

छठ पूजा में व्रत और उपवास का बहुत महत्व है. व्रती महिलाएं सूर्य देव की कृपा पाने के लिए अनेक संस्कार करती हैं.

इस दौरान विशेष प्रसाद खाया जाता है. ठेकुआ, गन्ना, नारियल, फल और चावल जैसे प्रसाद खाए जाते हैं.

छठ पूजा के दौरान विशेष गीत गाए जाते हैं. “कांच ही बांस के बहंगिया”, “उग हो सूरज देव” और “केलवा के पात पर उगेलन सूरज” जैसे गीत इस महापर्व की अभिव्यक्ति हैं.

छठ पूजा का ऐतिहासिक महत्व और परंपरा

छठ पूजा की एक प्राचीन कथा है. देवताओं की हार के बाद, देव माता अदिति ने छठी मैया की आराधना की. यह पर्व भक्ति और आस्था का प्रतीक है. इस दिन लोग पवित्र नदी या तालाब में स्नान करते हैं. फिर वे सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं.

छठ पूजा की परंपरा गंगा स्नान और सूर्य देव की पूजा पर आधारित है. व्रती शुद्ध वस्तुओं का उपयोग करते हैं. यह पर्यावरण संरक्षण के सिद्धांतों का पालन करता है. यह पर्व स्थानीय परंपराओं का प्रतीक भी है.

छठ पूजा देश के विभिन्न हिस्सों में बड़े उत्साह से मनाया जाता है. बिहार में इसका सबसे बड़ा केंद्र है. यह त्योहार न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि आर्थिक लाभ भी प्रदान करता है. इस पूजा में उपयोग की जाने वाली सभी वस्तुएं स्थानीय स्तर पर बनाई जाती हैं.

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छठ पूजा न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का भी महत्वपूर्ण संदेश है. यह पर्व जलस्रोतों को शुद्ध करने पर जोर देता है. इन जलस्रोतों के स्वच्छ होने से मानव जीवन को लाभ होता है.

chhath puja के चार दिवसीय व्रत का क्रम

  • छठ पूजा एक चार दिवसीय त्योहार है. यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से शुरू होता है और कार्तिक शुक्ल सप्तमी पर समाप्त होता है.
  • दूसरे दिन, लोग पूरे दिन उपवास रखते हैं. शाम को वे पूजा करते हैं और गुड़, चावल की खीर, और रोटी खाते हैं.
  • तीसरे दिन, व्रती सूर्य के अस्त होने पर संध्या अर्घ्य देते हैं. चौथे दिन, वे उषा अर्घ्य देकर व्रत समाप्त करते हैं.
  • इस दौरान, व्रती तामसिक भोजन, मांस, और शराब छोड़ देते हैं. वे शुद्धता और स्वच्छता का विशेष ध्यान रखते हैं.
  • वे मिट्टी या प्राकृतिक सामग्री के बर्तनों का उपयोग करते हैं. संध्या और उषा अर्घ्य दोनों का महत्व है.
  • प्रसाद को शुद्ध बनाने के लिए विशेष सावधानी बरती जाती है. व्रती अपने हाथ धोते हैं ताकि वे शुद्ध रहें.

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