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माइनस डिग्री पर पसीना छुड़ा देगी ये 100 ग्राम वाली रजाई

ठंड का मौसम शुरु हो चुका है, लगभग सभी घरों में रजाई का इस्तेमाल होने लगा है। फिर बात अगर गुलाबी नगरी की हो तो भले ही यहां दिन ज्यादा ठंडा न हो लेकिन रात का तापमान काफी गिर जाता है।

इस मौसम में याद आती है, जयपुर की रजाईयां वजन में जितनी हल्की होती है उतनी ही छुअन में रेश्मी होती है। जयपुर की रज़ाईयां न सिर्फ प्रदेश में मशहूर हैं बल्कि देश-विदेशों से भी इसके चाहने वाले इसे मंगवाते हैं। चलिए जानते हैं कि, आखिर क्यो है ये रज़ाई इतनी फेमस और क्या है इसका इतिहास।

आखिर क्यों है जयपुरी रजाईयां इतनी खास

ये रजाई अपनी 3 चीजों की वजह से काफी फेमस है। वो है, लाइट वेट, लोकल प्रिंट और सिल्की टच। जपुर की ये 100 ग्राम रुई से बनी रजाई दुनियाभर में काफी तारीफे बटौर चुकी है। जहां एक ओर ठंड में लोग 3 या 4 किलो रुई से भरकर बनी रजाई ओढ़ते हैं, वहीं उतनी ही गरमाहट ये 100 ग्राम रूई में बनी रजाई दे सकती है।

इसमें रजाई का वजन 250 ग्राम, 600 ग्राम तक ही सीमित रहता है और इतनी हल्की होने के बाद भी यह काफी गर्म होती है। इन रजाईयों का सिल्की टच अपने आप में सुखद एहसास है, इसी के साथ इसका प्रिंट और कलर काफी खास होते हैं जो लोगों को काफी पसंद आते हैं।

क्या है इन रजाईयों का इतिहास
असल में इस रजाईयों को राजा महाराजा के परिवार के लिए बनाया जाता था। जयपुर स्थापना के समय राजा ने आस पास के कलाकारों को जोड़कर अपने शहर में बसाया था। इनमें रजाई-गद्दे-मसनदें और सर्दी की पोशाकें तैयार करने वाले कारीगर भी बसाए गए। इन कारीगरों का सारा कामकाज राजपरिवार और रईसों पर निर्भर था। लेकिन समय के साथ ये शौक आम जनता में भी आ गए हैं।

अगर आप असली जयपुरी रजाई चाहते हैं तो, शाही महल के आसपास सिरहड्योढी बाजार में इन रजाइयों की पुरानी दुकानें बहुतायत से मिल जाएगी। पुराने शहर में हवामहल रोड, रामचंद्रजी की चौकड़ी, चांदी की टकसाल, सुभाष चौक, बड़ी चौपड़, रामगंज, त्रिपोलिया, छोटी चौपड़, गणगौरी बाजार आदि कई जगह इन रजाईयों की पुरानी दुकानें और कारीगर मिल जाते हैं। खास बात यह कि इन रजाईयों का निर्माण आज भी हाथ से किया जाता है।

कैसे बनती है जयपुरी रजाई
इस रजाई को बनाने के लिए रूई को कारीगर द्वारा पतली बेंत से इतना पीटा जाता है कि सौ ग्राम रूई पूरे छह फीट के खोल में समाने जितने स्पेस में बिछ सके। इस काम को करने में घंटो लग जाते हैं। रजाई के खोले भी स्पेशल होते हैं। इनका ऊपर का हिस्सा रेश्मी और कलात्मक होता है जबकि अंदर का ओढे जाने वाला हिस्सा सूती होता है। इस खोल को पहले जमीन पर बिछाया जाता है, इसके बाद उसपर हुई रूई रखी जाती है और इस तरह से रोल किया जाता है कि खोल सीधा हो जाता है और सारी रूई खोल के अंदर समा जाता है।

कितने प्रकार की हैं रजाईयां
इस रजाई में कई प्रकार आतेो हैं जैसे कि, हैंड ब्लॉक बगरू प्रिंटिड, वेलवेट रजाई, कॉटन स्टफ्ड रजाई, मल्टीकलर डुएट रजाई, जयपुरी लहरिया रजाई, ट्रेडिशनल सांगानेरी प्रिंटेड रजाई, जाल प्रिंट रजाई, कॉटल डुएट प्रिंटिड, सांगानेरी गोल्ड प्रिंटिड रजाईयां बहुत पसंद की जाती हैं।

आजकल जयपुरी रजाईयों को मॉडर्न प्रिंट के साथ भी पसंद किया जा रहा हैं। ये रजाईयां सिंगल और डुएट साइजों में उपलब्ध हैं और दोनों की रेट में बहुत ज्यादा फर्क भी नहीं होता। इगर आप ऑरिजनल जयपुरी रजाईयां लेते हैं तो ये, 050 से लेकर 3000 रूपए तक मिल जाती हैं।