भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने बुधवार को कहा कि रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर वैश्विक स्थिति के कारण दुनिया के बाजारों में खाने के सामान के दाम अप्रत्याशित रूप से बढ़े हैं, जिसका असर घरेलू बाजार में भी दिख रहा है। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में महंगाई का दबाव बना रह सकता है। यानी आगे महंगाई और बढ़ने की आशंका है।
बिना किसी तय कार्यक्रम के मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की दो-चार मई को हुई बैठक के बाद आरबीआई ने बुधवार को प्रमुख नीतिगत दर रेपो को तत्काल प्रभाव से बढ़ाने की घोषणा की। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने इस साल अप्रैल में मौद्रिक नीति समीक्षा में मुद्रास्फीति को लेकर जो अनुमान जताया था, उसमें कोई बदलाव नहीं हुआ है। रिजर्व बैंक ने चालू वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई दर 5.7 प्रतिशत रहने का अनुमान रखा है।
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति मार्च महीने में बढ़कर करीब सात प्रतिशत पर पहुंच गयी। मुख्य रूप से वैश्विक स्तर पर खाद्य पदार्थों के दाम में तेजी का असर घरेलू बाजार पर भी पड़ा है।
शक्तिकांत दास ने कहा कि लगातार ऊंची मुद्रास्फीति से बचत, निवेश और प्रतिस्पर्धी क्षमता तथा उत्पादन वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है। ऊंची मुद्रास्फीति से सबसे ज्यादा गरीब लोगों पर असर पड़ता है क्योंकि इससे उनकी क्रय शक्ति प्रभावित होती है।
दूध-तेल के दाम और बढ़ सकते हैं
दास ने कहा, वैश्विक स्तर पर गेहूं की कमी से घरेलू कीमतों पर भी असर पड़ रहा है। कुछ प्रमुख उत्पादक देशों के निर्यात पर पाबंदियों और युद्ध के कारण सूरजमुखी तेल के उत्पादन में कमी से खाद्य तेल के दाम मजबूत बने रह सकते हैं। पशु चारे की लागत बढ़ने से पॉल्ट्री, दूध और डेयरी उत्पादों के दाम बढ़ सकते हैं।’दास ने अपने बयान में कहा, ”कीमतों के बारे में जानकारी देने वाले उच्च आवृत्ति के संकेतक खाद्य पदार्थों के दाम को लेकर दबाव बने रहने का संकेत देते हैं। साथ ही मार्च के दूसरे पखवाड़े से घरेलू बाजार में पेट्रोलियम उत्पादों के बढ़ते दाम मुख्य मुद्रास्फीति को बढ़ा रहे हैं तथा अप्रैल में इसके और तेज होने की आशंका है। गवर्नर ने कहा कि कच्चे माल की लागत में वृद्धि से खाद्य प्रसंस्करण, गैर-खाद्य विनिर्मित वस्तुओं और सेवाओं के दाम एक बार फिर बढ़ सकते हैं।
फिर बढ़ सकती है दरें: विशेषज्ञ
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य आर्थिक सलाहकार मदन सबनविस के मुताबिक आने वाले दिनों में महंगाई की परिस्थितियों को देखते हुए रिजर्व बैंक की ओर से ऐसे और कदम भी उठाए जा सकते हैं। उनके मुताबिक पहले उम्मीद थी कि कैलेंडर वर्ष 2022 में आधा फीसदी की रेपो रेट में बढ़त संभव है लेकिन अब इसमें और आधा फीसदी की बढ़त होने की आशंका है। उन्होंने कहा कि रेपो दर में बढ़त अतिरिक्त मांग दबावों के निर्माण को कम करने में मदद करेगी और महंगाई में बढ़त को धीमा कर देगी, हालांकि यह वैश्विक वजहों से संचालित कुछ घटकों को बिल्कुल भी प्रभावित नहीं कर सकती है।
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