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Dhirubhai Ambani: ‘मिट्टी’ से भी पैसा कमाना जानते थे धीरुभाई अंबानी, ₹500 और तीन कुर्सी से खड़ा कर दिया रिलायंस

देश और दुनिया की दिग्गज कंपनियों में शामिल रिलायंस इंडस्ट्री की नींव रखने वाले धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani Death Anniversary) का निधन 6 जुलाई 2002 में हो गया। धीरूभाई अंबानी ने शून्य से शिखर तक का सफर किया है।

अपने दम पर उन्होंने रिलायंस की नींव रखी और उसे देश की बड़ी कंपनियों में शामिल कर दिया। न तो वो किसी कारोबारी घराने से आते थे और न हा उनके पास पैसे थे। अभावों में जिसका बचपन बीता, उसने अपनी मेहनत के दम पर अरबों का कारोबार खड़ा कर दिया। महज 500 रुपये और तीन कुर्सी वाले एक दफ्तर से उन्होंने देश की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस की नींव रखी। भले ही उनके पास पैसा न हो, लेकिन उनके भीतर कारोबार की समझ थी। वो मिट्टी से भी पैसा कमाने का गुर जानते थे। आइए जानते हैं जानते हैं कि कैसे ठेले पर गांठिया बेचने वाले धीरजलाल हीराचंद धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) बन गए।

​गांठिया बेचने से हुई शुरुआत​

धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) का जन्म 28 दिसंबर 1933 को गुजरात के छोटे से कस्बे में हुआ था। उनके पिता एक साधारण टीचर थे तो वहीं मां हाउस वाइफ। पांच भाई-बहन के साथ पूरा परिवार दो कमरे के घर में रहता था। परिवार की आर्थिक मदद करने के लिए धीरूभाई अंबानी गांठिया बेचने का काम करने लगे। वो गिरनार की पहाड़ियों के पास गांठिया बेचा करते थे। उससे दो कमाई होती मां को सौंप देते थे।

दसवीं पास करने के बाद वो साल 1949 में अपने भाई रमणीकलाल के पास यमन चले गए। वहां उन्हें एक पेट्रोल पंप पर नौकरी मिल गई। 300 रुपये की सैलरी पर उन्हें पहली नौकरी मिली, लेकिन उनके काम और मेहनत को देखकर पेट्रोल पंप मालिक ने उन्हें मैनेजर बना दिया। धीरूभाई का मन नौकरी में लगा नहीं। वो हमेशा से कारोबार करना चाहते थे। जो सेविंग बची थी वो लेकर वो देश लौट गए।

​500 रुपये से हुई शुरुआत​

500 रुपये के साथ वो मुंबई पहुंचे। उन्होंने अपने चचेरे भाई चंपकलाल दिमानी की मदद से रिलायंस कमर्शियल कॉरपोरेशन कंपनी की शुरुआत का। कारोबार की समझ उनके पास पहले से थी । अपनी कंपनी की मदद से उन्होंने पश्चिमी देशों में अदरक, हल्दी और अन्य मसाले बेचना शुरू किया। कारोबार में धीरूभाई अंबानी की एंट्री हो चुकी थी। उन्हें बाजार और मांग की अच्छी जानकारी थी। वो समझ चुके थे कि आने वाले दिनों में पॉलिएस्टर कपड़ों की डिमांड बढ़ने वाली है। वो हमेशा आगे का सोचते थे और फिर कारोबार शुरू करते थे।

​मिट्टी बेचकर कर ली कमाई​

धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) के भीतर कारोबार की कितनी कुशलता और समझ थी इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने अरब के एक शेख को मिट्टी बेचकर कमाई कर ली। अरब के शेख को अपने बगीचे में गुलाब के फूल चाहिए थे। इसलिए उन्हें खास मिट्टी की जरूरत थी। जैसे ही यह बात धीरूभाई अंबानी को पता चली, उन्होंने शेख के लिए भारत से मिट्टी भिजवा दी। इसके बदले शेख ने उन्हें मुंह मांगी कीमत दी। धीरूभाई ने अब मसालों के बाद टेक्सटाइल का कारोबार शुरू किया। उन्होंने पॉलिएस्टर के निर्यात का काम शुरू कर दिया। उन्होंने अपना पहला ब्रांड Vimal लॉन्च कर दिया।

​तीन कुर्सी के साथ खोला ऑफिस​

उन्होंने अपनी नई कंपनी रिलायंस कॉमर्स कॉरपोरेशन के लिए मुंबई में 350 वर्ग फुट का कमरा किराए पर लिया। ऑफिस में एक मेज, तीन कुर्सी, राइटिंग पैड के साथ काम शुरू किया। साल 1966 में उन्होंने गुजरात के अहमदाबाद में एक कपड़ा मिल की शुरुआत की, जिसका नाम ‘रिलायंस टैक्सटाइल्स’ रखा। धीरे-धीरे उन्होंने प्लास्टिक, मैग्नम, पेट्रोकेमिकल, बिजली उत्पादन का कारोबार शुरू किया। काम के मुकाबले जगह कम पड़ने लगी थी। उन्होंने मुंबई में बड़ा ऑफिस ले लिया।

​काम के साथ-साथ परिवार को भी अहमियत​

कारोबार शुरुआती दौर में था, इसलिए उन्हें 14-15 घंटे काम करना पड़ता था। लेकिन जितना भी वक्त मिलता था वो परिवार के साथ बिताते थे। उन्हें न तो पार्टी करना पसंद था और न ही घूमना-फिरता। काम के बाद का सारा वक्त वो परिवार को देते थे। उन्होंने अपनी कंपनी का नाम तीन बार बदला और साल 1977 में जाकर फाइनल तौर पर रिलायंस इंडस्ट्रीज रखा। साल 1977 में उन्होंने भारत का पहला आईपीओ लाने का फैसला किया। धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) रिस्क देने के माहिर थे।

मजबूत व्यक्तित्व वाले धीरूभाई अंबानी (Dhirubhai Ambani) पैसे से पैसा बनाने लगे। शेयर बाजार की उन्हें अच्छी समझ थी। रिलायंस पहली ऐसी कंपनी थी, जिसकी एनुअल मीटिंग के लिए स्टेडियम बुक करवाना पड़ा। धीरूभाई के भरोसे के दम पर कंपनी लगातार बढ़ती चली गई। 6 जुलाई 2002 में उनका हो गया। उनके जाने के बाद मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी ( Anil Ambani) में रिलायंस इंडस्ट्रीज का बंटवारा हो गया।