राहुल गांधी (Rahul Gandhi) के सावरकर पर दिए गए गुरुवार के बयान पर विवाद से कई और विवाद पैदा होते चले जा रहे हैं। राहुल गांधी ने विनायक दामोदर सावरकर की अंग्रेज सरकार को लिखी एक चिट्ठी दिखाते हुए कहा था कि सावरकर ने अंग्रेजों से माफी मांगी थी। यह विवाद महाराष्ट्र में तूल पकड़ता गया।
BJP, शिंदे गुट और एमएनएस ने इसके विरोध में प्रदर्शन किया। राहुल (Rahul Gandhi) शुक्रवार और शनिवार को सावरकर पर बोलने से बचे। लेकिन अब बीजेपी नेता सुधांशू त्रिवेदी (Sudhanshu Trivedi) ने कह दिया है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी पांच बार औरंगजेब से माफी मांगी थी।
BJP नेता सुधांशू त्रिवेदी (Sudhanshu Trivedi) ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने भी औरंगजेब को पांच बार पत्र लिखा था। उस वक्त राजनीतिक मुश्किलों से बाहर आने के लिए कई लोग माफीनामा लिखा करते थे। इस बयान पर एनसीपी नेता और महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री जितेंद्र आव्हाड ने आपत्ति जताई है। उन्होंने ट्वीट कर लिखा है कि ऐसा दावा करने वाले बीजेपी प्रवक्ता पागल ही हो सकते हैं।
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BJP प्रवक्ता सुधांशू त्रिवेदी के बयान पर मचा कोहराम
शिवाजी महाराजांनी ५ वेळा औरंगजेबा ची पत्र लिहून माफी मागितली होती असा म्हणणारा ठार वेडाच असू शकतो … बोलणारा #भाजप प्रवक्ता pic.twitter.com/QzkPtsVdrK
— Dr.Jitendra Awhad (@Awhadspeaks) November 19, 2022
सावरकर को उठा रहे थे या शिवाजी महाराज को गिरा रहे थे?
सुधांशू त्रिवेदी न्यूज चैनल आज तक के टीवी डिबेट में भाग ले रहे थे। वे सावरकर को डिफेंड करते हुए ऐसा कह गए। उन्होंने कहा कि उस वक्त के प्रस्तावित फॉरमेट के तहत सावरकर ने चिट्ठी लिखी। तो क्या हुआ? उन्होंने ब्रिटिश संविधान की शपथ तो नहीं ली ना?
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समझ नहीं रहे लोग नासमझ, सब काल-देश-परिस्थिति का फर्क
कल राहुल गांधी द्वारा दिए गए सावरकर पर बयान को लेकर महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी ट्वीट किया था। उन्होंने लिखा था कि जिस पत्र की आखिरी लाइन के आधार पर राहुल यह दावा कर रहे हैं, वैसी ही लाइन महात्मा गांधी ने भी अंग्रेज सरकार को लिखी थी, तो क्या महात्मा गांधी ने भी माफी मांगी थी? वो लाइन थी- I beg to remain your faithful servant। राहुल का तर्क था कि हिंदी में इसका मतलब होता है- आप मुझे अपना नौकर रख लें। लेकिन देवेंद्र फडणवीस और सावरकर के प्रपौत्र रणजीत सावरकर ने यह तर्क दिया कि उस समय का पत्र लिखने का प्रेस्क्राइब्ड फॉरमेट ही ऐसा था।
यानी पत्र में आप कुछ भी लिखें, पत्र को खत्म इसी पंक्ति से किया जाता था। इसलिए जब अंग्रेजों से पत्र व्यवहार करना होता था तो सावरकर ही नहीं, गांधी भी इसी लाइन से पत्र खत्म करते थे। सुधांशु त्रिवेदी भी यही कहना चाह रहे हैं कि जिस वक्त जिसकी सत्ता होती है, उस वक्त उसके ही प्रस्तावित नियम के तहत पत्र व्यवहार करना पड़ता है। मिसाल के तौर पर छत्रपति शिवाजी महाराज को औरंगजेब से पत्र व्यवहार करना पड़ा, तो उन्हें भी उसी तरीके से करना पड़ा जो औरंगजेब के राज में पत्र व्यवहार की परिपाटी थी।
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