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12 साल की उम्र में मजाक-मजाक में उठा ली थी 50 किलो चावल की बोरी, 6 साल बाद भारतीय वेटलिफ्टर ने रचा इतिहास

भारत की हर्षदा गरुड ने एक दिन पहले इंटरनेशनल वेटलिफ्टिंग फेडरेशन की जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा. हर्षदा इस चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली भारतीय हैं. उनके लिए यहां तक का सफर बड़ा उतार-चढ़ाव भरा रहा. हर्षदा को आज वो दिन याद आ रहा है, जब 12 साल की इस लड़की ने मजाक-मजाक में चावल की 50 किलो की बोरी अपनी पीठ पर लाद ली थी. तब वो आठवीं क्लास में पढ़ती थीं और उन्होंने अपने गांव में पिता को इसी तरह बोरियां ढोने के लिए संघर्ष करते देखा था. कभी चावल की बोरी पीठ पर लादने वाली 12 बरस की बेटी ने आज भारत का मान बढ़ाया है.

जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतने के बाद हर्षदा ने कहा, “जब मैंने बचपन में चावल की बोरी पीठ पर लाद ली थी, तब नहीं सोचा था कि आगे चलकर इसी खेल में करियर बनाऊंगी.” लेकिन पिता का यह सपना था, जिसे पूरा किया.

हर्षदा ने गोल्ड मेडल जीतकर रचा इतिहास
पुणे के वडगांव की रहने वाली 18 साल की हर्षदा ने सोमवार को ग्रीस में चल रही जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में 49 किलो भार वर्ग में कुल 153 किलो (70KG+83KG) का वजन उठाकर गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इसे लेकर उन्होंने कहा, “मेडल जीतने को लेकर मैं पूरी आश्वस्त थी. लेकिन गोल्ड मेडल जीतना वाकई बड़ी बात है.”

पिता-मामा के वेटलिफ्टर बनने का सपना पूरा किया
हर्षदा के पिता और मामा भी वेटलिफ्टर बनना चाहते थे. लेकिन उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया. इसके बाद दोनों ने हर्षदा को इसके लिए प्रेरित किया और आज उन्होंने इतिहास रच दिया. हर्षदा पुणे के पास जिस वडगांव से आती हैं, वो मनमाड, सांगली और कोल्हापुर की तरह ही महाराष्ट्र में वेटलिफ्टिंग का बड़ा सेंटर है, जिसका नेतृत्व 73 साल के बिहारीलाल दुबे करते हैं. उन्होंने 1972 में इस गांव में छोटा सा जिम शुरू किया था और यहीं से इस गांव के वेटलिफ्टिंग के पावर सेंटर के रूप में उभरने की शुरुआत हुई थी.

कोच की बहू पर पिता ने रखा हर्षदा नाम
हर्षदा को यह नाम कैसे मिला? इसकी कहानी भी दिलचस्प है. दरअसल, हर्षदा के पिता शरद और वडगांव में जिम शुरू करने वाले बिहारीलाल दुबे की बहू एक साथ ट्रेनिंग करते थे. बिहारीलाल की बहू का नाम भी हर्षदा ही था. एक बार क्रॉस कंट्री रेस में हर्षदा ने गोल्ड मेडल जीता तो पूरे गांव में उसका विजय जुलूस निकाला गया था. इसे देखने के बाद ही शरद ने यह तय कर लिया था जब भी वो पिता बनेंगे, तो उनकी पहली संतान का नाम हर्षदा ही होगा.

शरद ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, “इसलिए जब मेरी बेटी पैदा हुई तो मैं बहुत खुश हुआ था. उसके जन्म से पहले ही यह तय हो गया था कि वो वेटलिफ्टर बनेगी और भारत का प्रतिनिधित्व करेगी.”

खुश हूं कि बेटी किताबों में नहीं फंसी: हर्षदा के पिता
शरद ने आगे कहा कि शुक्र है, मेरी बेटी को पढ़ाई से नफरत थी, नहीं तो वह किताबों में फंस जाती. जिस दिन उसने 50 किलो की चावल की बोरी उठाई, उसी दिन से मैंने उसे वेटलिफ्टिंग में डाल दिया.

जब टीचर की चुनौती का दिया जवाब
पिता को हर्षदा की पढ़ाई से जुड़ा एक किस्सा आज भी याद है. उन्होंने बताया कि हर्षदा बचपन से ही जिद की पक्की है. एक बार उसे एक टीचर ने कह दिया था वो पास होने लायक 35 फीसदी नंबर भी हासिल नहीं कर पाएगी. लेकिन हर्षदा फर्स्ट क्लास पास हुई. इसके बाद उसने पेड़े खरीदे और उस टीचर की क्लास में गई और कहा, “सर देखो मैं फर्स्ट क्लास नंबरों से पास हुई हूं. कभी भी किसी छात्र से यह मत कहना कि वो ऐसा नहीं कर पाएगा. अब आप मिठाई और मेरे लिए जो शब्द कहे थे उसे खा जाइए.”

2028 ओलंपिक में मेडल जीतना लक्ष्य
हर्षदा के लिए स्नैच कभी भी परेशानी नहीं थी, लेकिन क्लीन एंड जर्क इवेंट में उन्हें कई बार जूझना पड़ा है. लेकिन अब ऐसा नहीं है. इसे लेकर हर्षदा ने कहा, ‘मैं टेंशन नहीं लेती हूं. मैं अपनी ट्रेनिंग जारी रखूंगी और कोच जो भी बताएंगे, उसे फॉलो करूंगी. मैं थोड़ी जिद्दी हूं. मुझे पता है कि 2028 के ओलंपिक में मुझे मेडल चाहिए और मुझे जो चीज चाहिए रहती है, तो उसके लिए पूरी जान लगा देती हूं.’