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झारखंड- पश्चिम बंगाल सीमा से सटे मैथन में मां कल्याणेश्वरी मंदिर में लोगों का आस्था देखते ही बनती है. सालोंभर यहां भक्त माता की पूजा करने पहुंचते हैं. नवरात्र में भक्त विशेष पूजा कराने और मन्नत मांगने यहां पहुंचते हैं.

काशीपुर के राजा हरि गुप्त द्वारा इस मंदिर का निर्माण करवाया गया था. ऐसा कहा जाता है कि हिंदू राजा ने दहेज के रूप में मां कल्याणेश्वरी को प्राप्त किया था. देवी मां उनकी पत्नी के साथ पालकी में सबरपुर आई थीं. हरि गुप्त ने साबरपुर में देवी मां के लिए भव्य मंदिर बनवाया. बाद में मंदिर को उसके वर्तमान स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया. साबरपुर में मूल मंदिर के कुछ अवशेष अभी भी हैं. पहले यहां नर बलि दी जाती थी, जो बाद में पशु बलि में बदला गया.

माता का दर्शन करने पहुंची दीपानिका पाल ने कहा कि एक महीने पहले ही उनकी शादी हुई है. और वह अपने परिवार की सुख शांति और नौकरी के लिए माता दरबार में हजारी लगाई है. माता से अपनी जॉब की मन्नत मांगी है.

मंदिर के पुजारी सुखन राय चौधरी बताते हैं कि पहले यह मंदिर जीटी रोड किनारे था. बाद में उनके पूर्वज को माता ने सपने में दर्शन दी कि वहां असुविधा हो रही है. जिसके बाद मंदिर को कल्यानेश्वरी में स्थापित किया गया. माता जगत का कल्याण करती है. इसलिए माता के मंदिर का नाम कल्याणेश्वरी पड़ा. यह मंदिर 500 साल से अधिक पुराना है. यहां झारखण्ड के अलावा बिहार, बंगाल के भक्त पूजा करने पहुंचते हैं.

मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां दूर- दूर से लोग अपनी मनोकामना लेकर पहुंचते हैं. और नीम के पेड़ में पत्थर बांधकर मन्नत मांगते हैं. मन्नत पूरी होने पर श्रद्धालु माता का दर्शन कर पत्थर को खोलकर नदी में प्रवाहित कर देते हैं.


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