Vivah Panchami
Vivah Panchami

मार्गशीर्ष मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी (Vivah Panchami) मनाया जाता है। इस साल यह तिथि 28 नवंबर को है और धूमधाम से विवाह पंचमी का पर्व मनाया जा रहा है। रामचरितमानस के अनुसार इस दिन देवी सीता (Ram Sita) के संग भगवान राम का विवाह हुआ था।

मानस के अनुसार श्रीराम और देवी सीता (Ram Sita) भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के अवतार थे लेकिन पृथ्वी पर आकर इन्होंने मानवीय लीलाएं की और इसी लीला में एक रोचक घटना है भगवान राम और देवी सीता के विवाह की। रामचरित मानस के अनुसार देवी सीता और राम दोनों एक घटनाक्रम में विवाह से पहले ही मिल चुके थे और एक दूसरे को जीवनसाथी बनाने का मन भी बना लिया था। आइए जानें यह (Vivah Panchami) कैसे हुआ।

कहां मिले थे श्रीराम और सीता

जनकपुर में जब राजा जनकजी ने देवी सीता के विवाह (Vivah Panchami) के लिए स्वयंबर का आयोजन किया तो अतिथि के रूप में महर्षि विश्वामित्र को भी विवाह में आमंत्रित किया। भगवान राम और लक्ष्मणजी उन दिनों विश्वामित्र के साथ थे इसलिए विश्वामित्रजी इन्हें अपने साथ जनकपुर लेकर आए। विवाह से पहले एक दिन विश्वामित्रजी ने श्रीराम को पूजा के लिए वाटिक से फूल चुनने के लिए भेजा।

संयोगवश उसी समय देवी सीता भी वाटिका में गौरी माता की पूजा के लिए सहेलियों के साथ आईं। इसी दौरान श्रीराम और माता सीता ने एक-दूसरे को देखा और मन ही मन एक-दूसरे को जीवनसाथी बनाने का निश्चय किया।

माता महागौरी की पूजा करते हुए देवी सीता ने उनसे प्रार्थना की कि, हे मैया श्रीराम ही मुझे वर के रूप में प्राप्त हों। देवी पार्वती अपने संकेतों से देवी सीता को यह वरदान देती हैं कि जो सांवरा आपके मन में बसा है वही आपको पति रूप में प्राप्त होगा। इस घटना का सुंदर वर्णन तुलसीदसजी ने रामचरित मानस में किया है-

मन जाहिं राचेउ मिलिहि, सो बरू सहज सुंदर सांवरो। करुणा निधान सुजान, सील सनेह जानत रावरो।।

इस तरह संपन्न हुआ देवी सीता और राम का विवाह

भगवान शिव ने राजा जनक की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें अपना दिव्य धनुष वरदान स्वरूप दिया था। बचपन में ही देवी सीता ने इस घनुष को एक हाथ से उठा लिया था। जनकजी ने देवी सीता के स्वयंवर में इसी दिव्य घनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने वाले के साथ देवी सीता के विवाह की शर्त रखी थी। इस शर्त को पूरा करने में सभी राजे-महाराजे असफल रहे। अंत में श्रीराम ने धनुष पर जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाने का प्रयास किया धनुष टूट गया और इस तरह देवी सीता और श्रीरामजी का विवाह होना तय हुआ और कई दिनों बाद जब दशरथजी जनकपुर पहुंचे तब श्रीराम और देवी सीता का विवाह संपन्न हुआ।


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