समाजवादी पार्टी सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव इन अस्पताल में भर्ती हैं। उन्हें आईसीयू में रखा गया है. अपने समर्थकों के बीच नेताजी के नाम से लोकप्रिय मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक जीवन काफी उतार चढ़ाव भरा रहा, ऐसा ही एक पहलू न्यूज बुलेटिन बताने जा रहा जिसे पढ़कर आपको लगेगा कि कैसे एक नेता के लिए देश की जनता ने उपवास रखा।
वर्ष 1967 का विधानसभा चुनाव हो रहा था। मुलायम सिंह यादव के राजनीतिक गुरु नत्थू सिंह तब जसवंतनगर के विधायक थे। उन्होंने अपनी सीट से मुलायम को मैदान में उतारने का फैसला लिया। लोहिया से पैरवी की और उनके नाम पर मुहर लग गयी।
अब मुलायम सिंह जसवंत नगर विधानसभा सीट से सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे। नत्थू सिंह इस बार करहल विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते भी। नाम की घोषणा होते ही मुलायम सिंह चुनाव प्रचार में जुट गये। डॉ. संजय लाठर अपनी किताब समजावाद का सारथी, अखिलेश यादव की जीवनगाथा में लिखते हैं कि तब मुलायम के पास प्रचार के लिए कोई संसाधान नहीं था। ऐसे में उनके दोस्त दर्शन सिंह ने उनका साथ दिया। दर्शन सिंह साइकिल चलाते और मुलायम कैरियर पर पीछे बैठकर गांव-गांव जाते।
पैसे नहीं थे। ऐसे में दोनों लोगों ने मिलकर एक वोट, एक नोट का नारा दिया। वे चंदे में एक रुपया मांगते और उसे ब्याज सहित लौटने का वादा करते। इस बीच चुनाव प्रचार के लिए एक पुरानी अंबेस्डर कार खरीदी। गाड़ी तो आ गयी, लेकिन उसके लिए ईंधन यानी तेल की व्यवस्था कैसे हो।
जब गांव के लोगों ने मुलायम के लिए रखा उपवास
दर्शन सिंह के हवाले से लाठर अपनी किताब में लिखते हैं कि तब मुलायम सिंह के घर बैठक हुई। बात उठी कि तेल भराने के लिए पैसा कहां से आयेगा। अचानक गांव के सोनेलाल काछी उठे और उन्होंने कहा कि हमारे गांव से पहली बार कोई विधायकी जैसा चुनाव लड़ रहा है। हमें उनके लिए पैसे की कमी नहीं होने देनी है।
वह दौर अभावों का था। लेकिन लोगों के पास खेती-किसानी और मवेशी थे। गांव के लोगों ने फैसला लिया कि हम हफ्ते में एक दिन एक वक्त खाना खाएंगे। उससे जो अनाज बचेगा, उसे बेचकर अंबेस्डर में तेल भराएंगे। इस तरह कार के लिए पेट्रोल का इंतजाम हुआ।
लाठर लिखते हैं कि दर्शन सिंह ने बताया कि कई बार चुनाव प्रचार के समय उनकी गाड़ी कीचड़ में फंस जाया करती थी, तब दोनों लोग मिलकर उसे निकालते थे। प्रचार जोर-शोर चल रहा था कि लेकिन मुलायम के पास दूसरे नेताओं की अपेक्षा संसाधनों की कमी थी।
मुलायम की लड़ाई कांग्रेस के दिग्गज नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा के शिष्य एडवोकेट लाखन सिंह से था, लेकिन जब नतीजे आये तो सब चौंक गये। सियासत के अखाड़े की पहली लड़ाई मुलायम सिंह जीत गये और सिर्फ 28 साल की उम्र में प्रदेश के सबसे के उम्र के विधायक बने, और यहां से मुलायम सिंह नेता जी हुए।
12 नवंबर 1967 को डॉ. लोहिया का निधन हो गया। लोहिया के निधन के बाद सोशलिस्ट पार्टी कमजोर पड़ने लगी। 1969 का विधानसभा चुनाव नेता जी हार गये। अब तक चौधरी चरण सिंह की पार्टी भारतीय लोकदल मजबूत होने लगी थी। चौधरी चरण सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की सबसे बड़ी आवाज थे। मुलायम सिंह के शामिल होने से पार्टी और मजबूत हुई। चरण सिंह नेता जी को नन्हे नेपोलियन के नाम से पुकारते थे। धीरे-धीरे मुलायम सिंह का राजनीतिक कद बढ़ता गया, तब उनकी गिनती राष्ट्रीय नेताओं में होने लगी थी।