New Delhi: Holi 2022: होलिका दहन (Holika Dahan 2022) में विशेष सामग्री की आहुति देने से कोरोना वायरस (Coronavirus) से मुक्ति मिलेगी। इसकी सामग्री विशेष रूप से तैयार की जानी चाहिए।
इस माह के पश्चात् वातावरण में कीट का प्रकोप प्रारंभ हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप नई बीमारियां अपना रूप दिखाने लगती हैं। वर्तमान समय में कोरोना वायरस (Coronavirus) से संपूर्ण विश्व भयभीत है इसलिए होलिका (Holika Dahan 2022) में यज्ञ सामग्री ऐसी हो जिसके द्वारा कोरोना कीटाणुओं का नाश हो।
होलिका (Holika Dahan 2022) में गाय के सूखे गोबर, गाय का घी, हवनसामग्री के साथ कपूर, कपूर कचरी, नीम पत्ते, नागरमोथा, सुगंधकोकिला, सोमलता, जायफल, जावित्री, जटामांसी, अगर, तगर, चिरायता, हल्दी, गिलोय व गूगल आदि जड़ी-बूटियों का प्रचुर मात्रा में प्रयोग किया जाए। ज्वार, बाजरा, तिल एवं विभिन्न प्रकार के औषधीय जड़ी-बूटियाँ आदि सामग्री डालने से इनके अंदर के रसायन भी सूक्ष्म रूप में निकलते हैं जो पूरे गांव नगर को वायु के कण के रूप में पोषण व सुगन्ध प्रदान करते हैं।
शायद गांव के बाहर मुहाने में यह होलिका दहन (Holika Dahan 2022) करने की परंपरा इन्हीं कारणों से थी ताकि इनसे निकली हुई गैस पूरे गांव को लाभान्वित कर सके। पूरे गाँव का वातावरण ’सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम’ हो सके। इस यज्ञ में लकड़ी का प्रयोग न करें तो अच्छा होगा। फिर यज्ञ के उपरांत इसकी आँच में जौ की बालियां भून लें।
होलिका दहन (Holika Dahan 2022) के बाद दूसरे दिन होलिका की राख को शरीर पर मला जाता है। गाय के गोबर की यह राख यानी भस्म एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीवायरल होती है। यह राख मानव शरीर के समस्त चर्म रोगों को समाप्त करने की शक्ति रखती है और मानव शरीर के चमड़ी में होने वाले रंध्र (सूक्ष्म छेद) को खोल देती है। इन्हीं रन्ध्रों से हमारी चमड़ी बाहर के ताप और हवामान को ग्रहण करता है और पसीना निकालने के लिए का उपयोग करता है।
वर्ष में एक बार इस भस्म को हमारे शरीर में अच्छे से लगा लेने से शरीर के अंदर की नकारात्मक उर्जा भी समाप्त होती है। गौ के गोबर के उपलों की राख को शरीर पर मलने से शरीर शुद्ध होता है, इसमें छिपा बैक्टीरिया नष्ट होता है, चर्म रोग ठीक होते हैं और शरीर को सर्दी ऋतु से गर्मी ऋतु में प्रवेश करना आसान हो जाता है।
होली के दिन होलिका दहन से पूर्व अग्निदेव की पूजा का विधान है। अग्निदेव पंचतत्वों में प्रमुख माने जाते हैं, जो सभी जीवात्माओं के शरीर में अग्नितत्व के रूप में विराजमान रहते हुए जीवन भर उनकी रक्षा करते हैं। अग्निदेव सभी जीवों के साथ एक समान न्याय करते हैं, इसलिए सनातन धर्म को मानने वाले सभी लोग भक्त प्रहलाद पर आए संकट को टालने और अग्निदेव द्वारा ताप के बदले उन्हें शीतलता देने की प्रार्थना करते हैं।
धर्मरूपी होली की अग्नि को अतिपवित्र माना गया है, इसलिए प्राचीनकाल में लोग इस अग्नि को अपने घर लाकर चूल्हा जलाते थे और कहीं-कहीं तो इस अग्नि से अखंड दीप जलाने की भी परंपरा है। मान्यता है कि इससे न केवल कष्ट दूर होते हैं, सुख-समृद्धि भी आती हैं।
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