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मौला अली अ.स की याद में मशालों का जुलूस, ताबूत देख रो पड़े अज़ादार, याअली की सदायें बुलंद

माह-ए-रमजान के 21वीं सुबह हज़रत अली की शहादत की याद में नवाब साहब के हाते किला में मशालों का जुलूस निकला. सबसे पहले रोजदारों को सहरी कराई गई उसके बाद किले की मस्जिद में फज्र की नमाज़ अदा की गई.जिसके बाद मौलाना आबिद रिज़वी ने पहले इमाम अली अ.स मजलूमियत पर मसायब बयान किए, बच्चे, जवान, बुज़ुर्गों ने इमाम अली के मसायब सुनकर सरों सीना पीटा. 23 मार्च की सुबह दो साल बाद मशालों का जुलूस बड़ी शान ओ शौकत से उठा.

जुलूस में बड़ी तादाद में मशालों को रौशन किया गया. अली अली हाय अली की सदाओं से इलाका गूंज उठा. जुलूस में वरिष्ठ साहिबे बयाज़ फरहत अली, जुगनू नवाब, अज़ादार हुसैन अज्जू, अशरफ अली पप्पू, रज़ा हुसैन , पत्रकार गुफरान नक़वी रज़ी हुसैन रमीज हुसैन,सदफ अली, शबाब हैदर, अम्मार हैदर, नाज़िम मोहम्मद रज़ा, शाने अली, समीर हुसैन, इब्राहिम हुसैन जैसे सेकडों अज़ादारों ने शिरकत की. काफी तादाद में महिला अज़ादारों ने भी मौला अली को पुरसा पेश किया. मुंतज़मीन नवाब जुगनू ने अज़ादारों का शुक्रिया अदा किया.

तारीख का सबसे पहला आतंकवादी हमला मस्जिद- ए- कूफ़ा में हुआ: मौलाना आबिद रिज़वी

मौलाना आबिद रिज़वी बताते हैं कि इमाम अली की शहादत का दिन इस्लामिक इतिहास का सबसे दर्दनाक दिन हैं. इस दिन पहले इमाम हज़रत अली को इराक के शहर कूफ़ा की मस्जिद में सुबह की नमाज़ के वक्त तलवार से घायल कर दिया गया था।

जिसके 2 दिन बाद रमज़ान के 21वें दिन उनकी शहादत हो गई। उसी दिन की याद में आज से पूरे दुनिया के शिया मुसलमान मजलिस मातम और जुलूस निकालकर ग़म मनाते हैं।