जानिए बिजली सुधरने में लगेंगे कितने दिन? स्थिति से निपटने में केंद्र का सारा सिस्टम हुआ सीरियस

देश में बिजली की मांग और आपूर्ति के अंतर को पाटने में हफ्ते भर से लेकर दस दिन तक का समय लग सकता है। बिजली की रिकार्ड मांग से उपजी स्थिति से निपटने में केंद्र सरकार का सारा सिस्टम सक्रिय हो चुका है। तापीय बिजली घरों को कोयले की आपूर्ति बढ़ाई गई है तो कोयला ढुलाई के लिए ज्यादा रेक भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं। ज्यादा कीमत की परवाह किए बगैर राज्यों को बाहर से कोयला आयात करने को कहा गया है। आयात आधारित तापीय बिजली घरों में ज्यादा उत्पादन हो भी रहा है। केंद्र ने राज्यों से आग्रह किया है कि वे अपना दायित्व निभाते हुए कोयला कंपनियों के साथ ही बिजली कंपनियों की बकाया राशि का जल्द से जल्द भुगतान करें। इसके बावजूद हालात को संभालने में 10 दिन का समय लग सकता है।

गैर भाजपा शासित राज्यों का लचर रवैया

बिजली मंत्रालय के उच्च पदस्थ सूत्रों का कहना है कि बिजली संयंत्रों को कोयला आपूर्ति को लेकर कुछ समस्याएं निश्चित तौर पर पैदा हुई हैं लेकिन हालात काबू में ही रहेंगे। दस दिन के भीतर स्थिति काफी हद तक ठीक हो जाएगी। हालांकि बिजली की काफी ज्यादा मांग को देखते हुए पूरे सिस्टम को सतर्क रहना होगा। बिजली मंत्रालय ने राज्यों अपना सिस्टम ठीक करने को कहा है। खास तौर पर उन्हें डिस्काम की तरफ से बिजली कंपनियों के बकाये का भुगतान करने को कहा गया है। डिस्काम पर ज्यादा बकाये की वजह से कई राज्य कोयला नहीं खरीद पा रहे हैं। अभी डिस्काम पर बिजली संयंत्रों का 1,05,000 करोड़ रुपये का बकाया है। इसमें तमिलनाडु पर 21,336 करोड़, आंध्र प्रदेश पर 9292 करोड़, राजस्थान पर 11,255 करोड़ और तेलंगाना पर 7,383 करोड़ का बकाया है। मौजूदा समय में इन सभी राज्यों में बिजली समस्या ज्यादा है। इन राज्यों के थर्मल पावर प्लांट को कोयले की आपूर्ति भी बाधित हो रही है क्योंकि ये समय पर कोयला खरीद का आर्डर नहीं कर पा रहे।

भुगतान में भी फिसड्डी गैर भाजपा शासित राज्य

यही स्थिति कोयला कंपनियों के बकाये को लेकर है। कुछ समय राज्यों पर 15,600 करोड़ रुपये का बकाया था। लेकिन पिछले एक पखवाड़े में कुछ राज्यों ने भुगतान किया है लेकिन फिर भी अभी 7,918 करोड़ रुपये का बकाया है। इसमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र पर 2,591.45 करोड़, बंगाल पर 955.44 करोड़, झारखंड पर 1018.22 करोड़, तमिलनाडु पर 705 करोड़ का बकाया हैं। इस बकाये के कारण फिलहाल ये राज्य ज्यादा मात्रा में कोयला नहीं खरीद सकते। यही वजह है कि सरकार कह रही है कि, समस्या कोयले की नहीं है। बिजली संयंत्रों को रोजाना 22.5 लाख टन कोयला चाहिए, जबकि कोल इंडिया उन्हें रोजाना औसतन 17 लाख टन कोयला पहुंचा रहा है। बिजली संयंत्रों के पास औसतन नौ दिनों का कोयला है। स्थिति पिछले साल सितंबर-अक्टूबर से बेहतर है।

मई के अंत तक और बढ़ेगी मांग

सनद रहे कि 29 अप्रैल, 2022 को देश में 2.07 लाख मेगावाट बिजली की मांग रही जो अप्रैल, 2021 के मुकाबले 17.14 फीसद ज्यादा है। पिछले 40 वर्षो में बिजली की मांग में तेज वृद्धि हुई है। उम्मीद है कि मई, 2022 के मध्य या अंत तक बिजली की मांग 2.20 लाख मेगावाट तक पहुंचेगी। कोल इंडिया का कहना है कि अप्रैल, 2022 में उन्होंने 14 फीसद से ज्यादा कोयले की आपूर्ति की है। मई, 2022 में यह और ज्यादा होगी बशर्ते पर्याप्त रेलवे रेक उपलब्ध हों। बिजली मंत्रालय का कहना है कि अभी 411 रेलवे रेक उपलब्ध हैं जिनकी संख्या बढ़ कर अगले कुछ दिनों में 440 से ज्यादा हो सकती है। इससे कोयला की आपूर्ति और बढ़ जाएगी।