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चीन की ‘चीख’ निकालेगा भारत, लद्दाख में तैनात की गई ये खतरनाक मिसाइल

लद्दाख में चीन के साथ पिछले दो साल से जारी तनाव के बीच भारत ने स्पाइक मिसाइल को तैनात कर दिया है। स्पाइक एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल है, जो किसी भी टैंक या बख्तरबंद वाहन को पलक झपकते बर्बाद कर सकती है। यह मिसाइल इतनी खतरनाक है कि इसे बस निशाना साधकर दागना होता है, लक्ष्य का पीछा कर बाकी का काम यह खुद करती है। इसी कारण स्पाइक को फायर एंड फॉरगेट मिसाइल भी कहा जाता है। इसकी दूसरी सबसे बड़ी खासियत कई तरह के लॉन्च प्लेटफॉर्म से दागा जाना भी है। स्पाइक को कंधे पर रखे लॉन्चर्स, हेलीकॉप्टर और ट्राइपॉड से भी दागा दा सकता है। इतना ही नहीं, इसे सेना के टैंक पर भी फिट किया जा सकता है। इस मिसाइल को हाल में ही लद्दाख में हुए एक मिलिट्री एक्सरसाइज के दौरान एक सैनिक के कंधे पर देखा गया है। एंटी टैंक मिसाइलों की ताकत दुनिया ने हाल में ही रूस-यूक्रेन युद्ध में देखी है, जहां अमेरिका से मिले जेवलिन मिसाइलों ने कोहराम मचा दिया था। स्पाइक को जेवलिन से भी खतरनाक एंटी टैंक मिसाइल माना जाता है।
फायर एंड फॉरगेट मिसाइल है स्पाइक एटीजीएम

स्पाइक एक इजरायली फायर-एंड-फॉरगेट एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल और एंटी-पर्सोनेल मिसाइल है। इसमें समें टेंडेम-चार्ज हाई एक्सप्लोसिव एंटी टैंक वॉरहेड (HEAT) लगा हुआ है। इसे इजरायली कंपनी राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स ने विकसित और डिजाइन किया गया है। यह मैन-पोर्टेबल, व्हीकल-लॉन्च और हेलीकॉप्टर-लॉन्च वेरिएंट में उपलब्ध है। इसके लॉन्चर एक बार टारगेट को नजर से देखने फायर एंड फॉरगेट तकनीक के जरिए उसे लॉक कर लेते हैं। इसके कुछ वेरिएंट अपने लक्ष्य पर ऊपर से हमला करते हैं, जो किसी भी टैंक का सबसे कमजोर क्षेत्र माना जाता है। टैंकों में चारों तरफ रिएक्टिव आर्मर की प्लेट लगी होती है, जो मिसाइल हमले के दौरान फटकर उसके प्रभाव को कम कर देती है। ऐसे में ऊपर की तरफ से हमला कर स्पाइक मिसाइल टैंक को जबरदस्त नुकसान पहुंचाती है। इतना ही नहीं, इसका एक वेरिएंट ऐसा भी है, जिसे दागने के बाद उसके लक्ष्य को बदला भी जा सकता है। मिसाइल एक इमेजिंग इंफ्रारेड सीकर से लैस है।

स्पाइक एनएलओएस सबसे अडवांस मिसाइल

स्पाइक मिसाइल को बनाने वाली इजरायली कंपनी राफेल अडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स के मुताबिक दुनियाभर के 29 देशों ने इस सिस्टम के अलग-अलग वेरिएंट को खरीदा है। भारतीय वायु सेना इनमें से स्पाइक एनएलओएस वेरिएंट खरीद रही है। स्पाइक एनएलओएस स्पाइक फैमिली का सबसे अडवांस वेरिएंट है। इसमें एनएलओएस का अर्थ ‘नॉन लाइन ऑफ साइट’ होता है, जो इसकी लंबी दूरी तक मार करने वाली क्षमता को दर्शाता है। स्पाइक एनएलओएस मारक क्षमता लगभग 32 किलोमीटर है, जो अमेरिका की एजीएम-114 हेलफायर से लगभग चार गुना है, जिसे अपाचे अटैक हेलीकॉप्टर पर तैनात किया गया है। ऐसी भी खबर है कि भारत टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत स्पाइक एनएलओएस को अपने देश में ही बना सकता है।

स्पाइक की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की तैयारी में भारत

स्पाइक एनएलओएस एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल को इस समय सीमित संख्या में ऑर्डर किया गया है। बाद में मेक इन इंडिया के तहत इस मिसाइल का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जा सकता है। हवा से फायर होने वाले स्पाइक एनएलओएस जैमिंग और बाकी गतिरोध को खुद ब खुद दूर कर दुश्मनों के जमीनी ठिकानों, उनके टैंक रेजीमेंट और आर्मर्ड व्हीकल को निशाना बना सकता है। इससे दुश्मन के टैंको की आगे बढ़ने की गति भी काफी हद तक धीमी हो सकती है।

भारत ने जेवलिन को छोड़ स्पाइक को क्यों चुना?

भारत लंबे समय से एयर लॉन्च एंटी टैंक मिसाइलों की खरीद करना चाहता था। 2011 में भारत के पास दो विकल्प थे। इनमें से पहली अमेरिका में बना FGM-148 जेवलिन मिसाइल और दूसरी स्पाइक एनएलओएस थी। भारत ने स्पाइक को इसलिए चुना गया क्योंकि इजरायल टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और मिसाइलों का घरेलू निर्माण करने के लिए तैयार था, जो मोदी सरकार की ‘मेक इन इंडिया’ पहल को बढ़ावा देता है। इन मिसाइलों की एकमुश्त खरीद के बजाय, भारत ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए इजरायल के साथ बातचीत की ताकि भारत में मिसाइलों का उत्पादन किया जा सके। इजरायली कंपनी ने भारत में कल्याणी के साथ मिलकर कल्याणी राफेल एडवांस्ड सिस्टम्स (केआरएएस) नाम के ज्वाइंट वेंचर को स्थापित किया है। ऐसे में इस मिसाइल का निर्माण आसानी से भारत में किया जा सकता है।

अमेरिका की जेवलिन मिसाइल कितनी खतरनाक

जेवलिन मिसाइल दुनिया की सबसे आधुनिक टैंक को भी नष्ट करने में सक्षम है। यह मिसाइल दो बार में अपने टारगेट को ध्वस्त करती है। पहली बार में मिसाइल टैंक के संपर्क में आते ही ब्लास्ट हो जाती है, जिसके बाद यह और अधिक शक्ति के साथ कवच को भेदने का काम करती है। जेवलिन मिसाइल किसी आर्मर्ड व्हीकल, टैंक और बंकरों को उड़ाने में सक्षम होती है। इससे किसी कम ऊंचाई पर उड़ने वाले एयरक्राफ्ट, जैसे-हेलीकॉप्टर, को भी निशाना बनाया जा सकता है। जेवलिन मिसाइलें ‘मैन पोर्टेबल’ हैं, जिन्हें यूक्रेनी सैनिक कंधों पर रखकर फायर कर सकते हैं। जबकि अन्य एंटी-टैंक सिस्टम को इस्तेमाल करने के लिए ट्राइपॉड की जरूरत पड़ती है