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भारत सहित दुनियाभर में कोरोना के मामले अब नहीं के बराबर रह गए हैं, लेकिन चीन में कोरोना का खतरा मुंह बाए खड़ा है. यूएस की एक रिपोर्ट में कहा गया है अगले तीन महीनों में वहां करीब 10 लाख लोग कोरोना का काल बन सकते हैं.

 

ये आंकडे़ हवा-हवाई नहीं हैं. चीन में जितने मरीज हर रोज सामने आ रहे हैं वह चीन में कोविड महामारी शुरू होने के समय में भी नहीं आए. चीन में ऐसी हालत क्यों हुई है. जिस देश से ये उम्मीद थी कि कोरोना से लड़ने में वो दुनिया के सामने मिसाल बनेगा वह देश क्यों फिसड्डी साबित हुआ?

1-चीन की गोपनीयता के चलते अविश्वास की स्थिति
बहुत सारी बातें हैं, जो चीन में हमेशा दुनिया से छिपाता रहा है. जहां तक कोरोना पीड़ितों की संख्या की बात पहली बार इतनी बड़ी संख्या में आयी है? तो क्या हमें सही सूचना पहली लहर के समय मिली थी? ये सबसे बड़ा प्रश्न है, क्योंकि चीन जाना जाता है अपनी महामारी को, अपनी कोई भी समस्या को छिपाने के लिए.

सबसे पहले दुनिया उन आंकड़ों और संख्याओं पर विश्वास नहीं करती है जो चीन जारी करता रहता है. हो सकता है अभी उनकी जो संख्या है वह सही हो, या यह भी हो सकता है कि उससे भी ज्यादा भयावह स्थिति हो, क्योंकि पिछले दो महीने से करीब-करीब उनका फाइनैंस कैपिटल शंघाई बंद है. कोई भी अपना फाइनैंस कैपिटल और कमर्शियल कैपिटल को इस तरह से बंद नहीं रखता. करीब 21 मिलियन बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं.

चीन जितनी संख्या बता रहा है उससे कहीं ज्यादा संख्या फ्रांस और जर्मनी में है. ब्राजील, साउथ कोरिया और जापान भी पीड़ित हैं.इन देशों में भी मामले कम नहीं हैं. जिस तरह चीन ने पूर्णतया लॉकडाउन किया है दूसरे देश नहीं कर रहे. इस तरह जब तक अविश्वास की स्थिति रहेगी तब तक चीन को ठीक समझा नहीं जा सकेगा. न ही कोरोना का सटीक हल निकल सकेगा.

2-चीन में वैक्सीनेशन फेल हो चुका है
पश्चिम का मीडिया कह रहा है कि चीन में वैक्सीनेशन फेल हो चुका है. हो सकता है कि यह हमारा पश्चिमी मीडिया की ओर झुकाव हो इसलिए हम कह रहे हैं कि चीन का वैक्सीनेशन फेल कर गया है. न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की खबर के अनुसार 28 वर्षीय चीनी महिला बिना बूस्टर डोज के कोरोना का सामना करने के लिए तैयार है.

उसे वायरस से डर नहीं है पर वैक्सीन के दुष्प्रभावों का डर ज्यादा है. पिछले साल महिला ने सिनोवैक की दो डोज लिया था. देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिन लोगों ने वैक्सीन लगवाया और बूस्टर डोज भी लिया पर उन्हें कोरोना ने लील लिया. चीन की माने तो देश में 90 फीसदी से ऊपर लोगों को वैक्सीन लग चुकी है लेकिन बूस्टर शॉट्स वाले वयस्कों की दर काफी कम है.

महामारी विशेषज्ञ एरिक फेगल-डिंग ने ट्विटर पर लिखा, “प्रतिबंध हटने के बाद से चीन में अस्पताल की व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है.” उन्होंने अनुमान लगाया कि चीन की 60 फीसदी से अधिक और दुनिया के 10 फीसदी आबादी अगले 90 दिनों में संक्रमित हो सकती है. उन्होंने कहा, “मौतें लाखों में होने की संभावना है.”

 

डॉ डिंग लिखते हैं कि, “बुजुर्गों में टीके के प्रति बहुत प्रतिरोध होता है. इसके अतिरिक्त, नए ओमिक्रॉन सब-वेरिएंट के लिए 2 डोज पर्याप्त नहीं हैं और चीन के मुख्य कोरोनावैक वैक्सीन के 3 डोज नए वेरिएंट के लिए पर्याप्त नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा कि गहरी समस्या कमजोर कोरोनावैक और सिनोफार्म टीकों में है. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि ध्यान देने वाली बात है कि मुख्य कोरोनावैक वैक्सीन के 3 डोज भी नए हालिया ओमिक्रॉन वेरिएंट को खत्म करने में कमजोर साबित हो रहे हैं.

3-बाहर की दुनिया से कटने के चलते समुचित शोध का अभाव
चीनियों का कोरोना को लेकर जो अप्रोच रहा है वो दूसरी दुनिया को बहुत हेय दृष्टि से देखने का रहा है. वेस्ट हो या ईस्ट वो सभी को अपने से कमतर मानकर चलते रहे हैं. अमेरिका जब शुरू में कोरोना से परेशान हुआ उसने भारत जैसे देश से मदद मांगने में भी हिचकिचाहट नहीं दिखाई. आपको याद होगा कि अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को घुड़कने के लिहाज में मदद मांगी थी.

जिसकी आलोचना भी हुई थी. भारत ने अमेरिका को तत्काल कुछ मेडिसिन भेजी थी. ब्राजील के राष्ट्रपति ने भी मदद मांगी और उन्हें मदद पहुंचाई गई. जिसके बाद उन्होंने पब्लिकली भारतीय पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ भी की थी. पर चीन ऐसा नहीं करता. चीन तकनीकी रूप से काफी संपन्न हो चुका है. शायद इसके चलते किसी से न सीखने की आवश्यकता उन्होंने समझी और न ही किसी से मदद लेने की आवश्यकता समझी. चीन ने भी अपना वैक्सीन डिवेलप की पर उसने न अंतराष्ट्रीय मदद ली

इसे विकसित करने में और न ही चीन की वैक्सीन को इंटरनैशनली मान्यता मिली. लेकिन भारत में दूसरे देशों से एक जॉइंट कोलैब्रेशन किया या बाहर से बाद में आवश्यकता पड़ी तो मंगवाया भी. भारतीय वैक्सीन को अंतरराष्ट्रीय मान्यता भी मिली. इसी तरह चीन को यह पता ही नहीं है कि दुनिया भर के देशों में कौन से वैरिएंट फैल रहे हैं. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण ये है कि चीन अपनी जानकारी शेयर नहीं करता इसलिए दूसरे देश भी जरूरी सूचना चीन के साथ शेयर नहीं करते . यही कारण चीन इस लडाई में अकेले पड़ गया.

4-जीरो कोविड पॉलिसी का है नतीजा
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक महामारी विशेषज्ञ डॉ. समीरन पांडा ने चीन की वर्तमान स्थिति को जीरो कोविड पॉलिसी का नतीजा बताया है. डॉ पांडा ने कहा, “महामारी की शुरुआत से ही चीन जीरो कोविड पॉलिसी का पालन कर रहा है जो मौजूदा लहर और मौतों के प्रमुख कारणों में से एक है.” उन्होंने कहा कि इस पॉलिसी ने आबादी को डेल्टा जैसे वेरिएंट के संपर्क में नहीं आने दिया.

5-वैक्सीनेशन कवरेज
कोविड की अधिक संख्या में मामले सामने आने का एक अन्य कारण टीकाकरण कवरेज भी है. विशेषज्ञों ने समय-समय पर विस्तार से बताया कि जब 80 प्रतिशत आबादी को टीका लगाया जाता है तो हर्ड इम्युनिटी बनाती है. वैक्सीन इम्युनिटी और नेचुरल इम्युनिटी वायरस की गंभीरता को रोक सकती है.

हाइब्रिड इम्युनिटी यह दर्शाती है कि लोगों पर एक निश्चित वैरिएंट कैसे असर करेगा. चूंकि चीन दुनिया से कोई मतलब रखता नहीं इसलिए उसे दुनिया के देशों में कई वायरसों के बारे में जानकारी ही नहीं है. एक्सपर्ट का कहना है कि कोविड-19 से होने वाली मौतें सिर्फ वायरस के कारण नहीं होती हैं. कोविड से हो रही कैजुअल्टी में को-मॉर्बिडिटीज बहुत बड़ी भूमिका निभाती रही है.

 


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