डेस्क: आज रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi) है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती (Shiv Parvati) की पूजा की जाती हैं।
हर साल रंगभरी एकादशी (Rangbhari Ekadashi 2022) फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। इस एकादशी को अमालकी एकादशी भी कहते हैं। आज के दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ आंवला के पेड़ की भी पूजा होती है। आज के दिन काशी को सजाया जाता है।
मान्यता है कि आज पहली बार भगवान शिव माता पार्वती (Shiv Parvati) को काशी लेकर आए थे। इसलिए ये एकादशी (Rangbhari Ekadashi 2021) बाबा विश्ननाथ के भक्तों के लिए महत्वपूर्ण होती है। आज से काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है जो अगले छह दिनों तक चलता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त
- एकादशी तिथि प्रारंभ: 13 मार्च 2022 को सुबह 10 बजकर 21 मिनट से
- एकादशी तिथि समाप्त: 14 मार्च 2022 को दोपहर 12 बजकर 05 मिनट पर
- पारण का समय: 15 मार्च 2022 को सुबह 6 बजकर 31 मिनट से 8 बजकर 55 मिनट तक
पूजा विधि
सुबह उठकर स्नान कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करें। पूजा में अबीर, गुलाल, चंदन और बेलपत्र चढ़ाएं। सबले पहले भगवान शिव को चंदन लगाएं और उसके बाद बेलपत्र और जल अर्पित करें। इसके बाद गुलाल और अबीर अर्पित करें।
माता पार्वती आती हैं ससुराल
आज के दिन बाबा विश्वनाथ के मंदिर को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है। फिर हर्ष और उल्लास के साथ माता पार्वती का गौना कराया जाता है। मान्यता है कि आज ही के दिन भगवान शिव माता पार्वती को काशी लेकर आए थे। इसके बाद शिवभक्तों ने गुलाल और अबीर खेलकर खुशी मनाई थी।
महत्व
रंगभरी एकदाशी को अमालकी एकादशी भी कहते हैं। इस दिन विधि विधान से पूजा करने से भगवान शिव और विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। आमलकी एकादशी के दिन आंवला के पेड़ की पूजा करने का विशेष महत्व है।
नगरों में घूमते हैं बाबा विश्वनाथ
रंगभरी एकादशी के दिन काशी विश्वनाथ को अच्छे से तैयार करके घुमाया जाता है। मान्यता है आशीर्वाद देने के लिए बाबा अपने भक्तों और श्रद्धालुओं के बीच जाते हैं। साथ में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी होता है। और, इसी दिन से काशी में होली की शुरुआत होती है। आपको बता दें काशी में हर साल बाबा विश्वनाथ का भव्य श्रृंगार रंगभरी एकादशी, दीवाली के बाद आने वाली अन्नकूट और महाशिवरात्रि के दौरान किया जाता है।
शोक होता है खत्म
कहा जाता है कि रंगभरी एकादशी से ही घरों में शुभ और मांगलिक कामों की शुरुआत हो जाती है। इसके अलावा जिन लोगों के घरों मृत्यु के कारण त्योहार रुके होते हैं, इस एकादशी से उन घरों में त्योहारों को उठाया जाता है।
कैसे मनाई जाती है रंगभरी एकादशी
बाबा विश्वनाथ की प्रमिता को अच्छे से सजाने और घुमाने के बाद इस दिन एक-दूसरे को गुलाल लगाया जाता है। शिव और पार्वती से जुड़े कई सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। खुशियों और रंगों के साथ यहां भक्त हर हर महादेव के जयकारे लगाते हैं।
कैसे करें पूजा
- काशी में ना होकर भी आप इस रंगभरी एकादशी को अपने घर पर मना सकते हैं। इसके लिए नीचे दिए गए कार्य करें।
- सुबह उठकर नहाएं और शिव-पार्वती की पूजा करें।
- शिव-पार्वती की मूर्ति या तस्वीर पर गुलाल लगाएं।
- भगवान शिव को प्रिय चीज़ें जैसे बेलपत्र दूध, इत्र और भांग चढ़ाएं।
रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इसी वजह से इस दिन भगवान विष्णु को प्रिय आवंले के पेड़ की पूजा भी होती है।