Placeholder canvas

Qualities of Ravan: रावण के वो 8 गुण… जिसने किया अमल उसकी खुल गई किस्मत

रामायण (Ramayana) में रावण (Ravan) का चित्रण एक नकारात्मक किरदार के रूप में किया गया लिहाजा लोग रावण के किरदार से जुड़ी बहुत सी बातें नहीं जानते। रावण में ऐसे कई गुण (Qualities of Ravan) थे, जो उसे अन्य दानवों से भिन्न बनाते हैं।

रावण (Qualities of Ravan) में ऐसे कई गुण थे, जो उसे अन्य दानवों से भिन्न बनाते हैं। हिन्दू धर्म के शास्त्र और धार्मिक ग्रंथों में दिए संदर्भ से छांटकर, हम आपके लिए लाए हैं रावण (Ravan) की कुछ विशेष बातें जो हमें सीख देती हैं।

परम भक्त

जन्म से ‘रावण’ का नाम ‘दशग्रीव’ और ‘दशानन’ था। भगवान कैलाश पर्वत पर ध्यानमग्न थे और रावण उनको हटाने का प्रयास कर रहा था। भगवान ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबाया, जिससे रावण के हाथ भी दब गए। बहते लहू के साथ रावण गुस्से में चीख रहा था। इस वजह से उसका नाम रावण (सदा चीखने वाला) पड़ा। इसके बाद रावण शिव भक्त बन गया और शिव तांडव स्तोत्रम की रचना की।

पांडित्य

रावण पूर्ण रूप से तो नहीं, लेकिन आधा ब्राह्मण था। रावण के पिता, विश्रवा एक ऋषि थे, जो पुलास्त्य कुल वंशज थे और माता कैकसी असुरों के कुल से थी। विश्रवा की दो पत्नियां थी- वारावर्णीनी और कैकसी। वारावर्णीनी ने धन के देवता कुबेर का जन्म का जन्म दिया औऱ कैकसी ने रावण, कुंभकरण, सुर्पनखा, विभीषण को जन्म दिया। रावण कई विषयों में विशेष ज्ञान रखता था। रावण और कुंभकरण ने कठोर तपस्या कर, ब्रह्मा जी से दैवीय शक्तियां ले लीं और कुबेर को लंका नगरी से निकाल दिया।

परम मित्र

रावण ने वानरों राजा बाली को मारने का प्रयत्न किया, जब वो समुद्र किनारे सूर्य देव की अराधना कर रहे थे। बाली इतना शक्तिशाली था कि वह रावण को उसके खींच कर किशकिंधा लेकर गया, जहां उससे पूछा गया कि उसे क्या चाहिए। रावण ने बाली को मित्रता की पेशकश की और दोनो में मित्रता हो गई। इसी वजह से सुग्रीव ने श्रीराम से मित्रता की और अपना राज्य पुन: प्राप्त किया।

परम ज्ञानी

रावण एक शक्तिशाली योद्धा होने के साथ वेदशास्त्र और ज्योतिषशास्त्र में भी निपुण था। कहा जाता है कि रावण ने अपने पुत्र मेघनाद के जन्म से पहले सूर्य और सभी ग्रहों को निर्देश दिया था कि वही स्थान पर रहें और मेघनाद को जन्म उस लग्न में हो, जिससे वो अमर हो जाए। लेकिन शनि ने अपना स्थान बदल लिया। इससे क्रोधित होकर रावण ने शनि पर अपनी गदा से आक्रमण कर दिया।

चतुर राजनीतिज्ञ

रावण नीति शास्त्र में भी निपुण था। जब भगवान राम ने रावण का वध किया और रावण अपने अंतिण क्षणों में था, तो श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि वे रावण से नीतिशास्त्र और कूटनीति का ज्ञान लें।

कठोर तपस्वी

रावण मृत्यु से भयभीत था। मृत्यु को दूर रखने के लिए उसने ब्रह्मा जी की कड़ी तपस्य़ा की अमरता का वरदान मांगा। हालांकि, ब्रह्मा जी ने अमरता वरदान नहीं दिया, लेकिन यह वरदान दिया की उसकी मृत्यु नाभी पर ही केंद्रित रहेगी। विभीषण को यह मालूम था और युद्ध के दसवें दिन, उन्होंने ही श्रीराम को इस राज के बारे में बताया था।

चतुर रणनीतिकार

अपनी तपस्या के लिए विख्यात रावण ने भगवान ब्रह्मा से यह वरदान भी लिया कि कोई भी देवता, दैत्य, असुर, गंधर्व या किन्नर उसका वध नहीं कर सकता। लेकिन रावण इस श्रेणी में मनुष्य को रखना भूल गया, जिसके कारण श्रीराम ने उसका वध किया।

विजेता

रावण का बल, बुद्धि और शक्ति इतनी अधिक थी कि रावण का राज्य सिर्फ लंका ही नहीं, बल्कि बालीद्वीप, मलयद्वीप, अंगद्वीप, वरहद्वीप, शंखद्वीप, यवदद्वीप और कुशाद्वीप तक फैला था।

एक ही अवगुण… अहंकार

इतने अच्छे गुणों के बाद भी रावण को बुराई के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। इसका मात्र एक ही कारण है कि रावण बेहद अहंकारी था। इसी के चलते उसने सीता जी का अपहरण किया और उसका सर्वनाश हो गया। अंत: गलती और अवुण के चलते युगों-युगों तक उसे बुराई का प्रतीक माना जाता है।