नवरात्र (Navratri) की अष्टमी (Ashtami) तिथि 3 october को कन्या पूजन (Kanya Pujan) है। कुछ लोग नवमी तिथि को भी कन्या पूजन करेंगे। कई जगहों पर इसे कन्या खिलाना या कंजक (Kanjak) पूजन भी कहा जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के दिन, नवरात्र (Navratri) की अष्टमी (Ashtami) और नवमी तिथि को छोटी कन्याओं को मां नवदुर्गा का रूप मान कर उनका स्वागत सत्कार किया जाता है। उन्हें भोजन (Kanya Pujan) कराया जाता है। माना जाता है कि जो लोग नवरात्रि के पूरे नौ दिन तक उपवास रहते हैं।
कन्या पूजन (Kanya Pujan) के बाद ही उनका व्रत पूरा माना जाता है। कन्या पूजन के बाद ही लोग मां का प्रसाद ग्रहण कर नौ दें के व्रत का पारण करते हैं। कन्या पूजन का भी एक शुभ मुहूर्त होता है जिसमें कन्या खिलानी चाहिए। अगर आप सही मुहूर्त में कन्या नहीं पूजते हैं तो व्रत का फल कम हो जाता है। इसलिए आइए जानते हैं इस नवरात्रि क्या है कन्या पूजन का शुभ मुहूर्त…
इस दिन है अष्टमी
नवरात्रि के आठवें दिन को नवरात्रि की अष्टमी तिथि माना जाता है। इस दिन मां महागौरी की पूजा अर्चना की जाती है। आज 03 अक्टूबर को अष्टमी है।
नवरात्रि अष्टमी की तिथि और शुभ मुहूर्त
नवरात्रि की अष्टमी तिथि 02 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 47 मिनट से शुरू होकर 03 अक्टूबर को शाम 04 बजकर 37 मिनट तक रहेगी।
अष्टमी तिथि पर कब तक कर लें हवन पूजन
हिंदू पंचांग के अनुसार, अष्टमी तिथि पर हवन पूजन का सबसे सर्वोत्तम मुहूर्त सुबह 10 बजकर 41 मिनट से दोपहर 12 बजकर 10 मिनट तक रहेगा।
कन्या पूजन के उत्तम मुहूर्त
- अमृत- सुबह 06:15 बजे से सुबह 07:44 बजे तक।
- शुभ- सुबह 09:12 बजे से सुबह 10:41 बजे तक।
- लाभ- दोपहर 03:07 बजे से शाम 04:36 बजे तक व शाम 04:36 बजे से शाम 06:05 बजे।
महाष्टमी के शुभ मुहूर्त
- ब्रह्म मुहूर्त- 04:38 ए एम से 05:26 ए एम।
- अभिजित मुहूर्त- 11:46 ए एम से 12:34 पी एम।
- विजय मुहूर्त- 02:08 पी एम से 02:56 पी एम।
- गोधूलि मुहूर्त- 05:53 पी एम से 06:17 पी एम।
- अमृत काल- 07:54 पी एम से 09:25 पी एम।
- रवि योग- 12:25 ए एम, अक्टूबर 04 से 06:15 ए एम, अक्टूबर 04
यह भी पढ़ें: Navratri 2022: ये हैं देवी दुर्गा के 9 नाम, जिनके जपने से बन जाते हैं बिगड़े काम
कन्या पूजन विधि
कन्या भोज और पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आमंत्रित करना चाहिए। गृह प्रवेश पर कन्याओं का पूरे परिवार के साथ स्वागत करें और मातृ शक्ति का आवाह्न करें। कन्याओं को स्वच्छ जगह बिठाकर सभी के पैरों को दूध से भरे थाल या थाली में रखकर अपने हाथों से उनके पैर धोने चाहिए और पैर छूकर आशीष लेना चाहिए।
उसके बाद माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम लगाना चाहिए। इसके बाद मां भगवती का ध्यान करके कन्याओं को इच्छा अनुसार भोजन कराएं। भोजन के बाद कन्याओं को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा, उपहार दें और उनके पुनः पैर छूकर आशीष लें।
कन्या पूजन में कितनी हो कन्याओं की उम्र?
कन्याओं की उम्र 2 तथा 10 साल तक होनी चाहिए और इनकी संख्या कम से कम 9 तो होनी चाहिए और एक बालक भी होना चाहिए। जिसे हनुमानजी का रूप माना जाता है। जिस प्रकार मां की पूजा भैरव के बिना पूर्ण नहीं होती, उसी तरह कन्या-पूजन के समय एक बालक को भी भोजन कराना बहुत जरूरी होता है।
उम्र के आधार पर माना गया है माता के स्वरूप
दो वर्ष की कन्या को कुमारी माना जाता है। तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति का स्वरूप मानी जाती है। त्रिमूर्ति यानी दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती का स्वरूप। चार वर्ष की कन्या को कल्याणी माना जाता है। पांच वर्ष की कन्या को रोहिणी कहा जाता है। छह वर्ष की कन्या को माता कालिका का रूप माना जाता है।
सात वर्ष की कन्या को चंडिका माता माना जाता है। आठ वर्ष की कन्या को शाम्भवी कहा जाता है। नौ वर्ष की कन्या को देवी दुर्गा का स्वरूप माना जाता है। दस वर्ष की कन्या को सुभद्रा कहा जाता है।
कन्या पूजन में उम्र का महत्व
एक कन्या की पूजा से ऐश्वर्य की प्राप्त होती है। दो कन्याओं की पूजा से भोग और मोक्ष साथ साथ मिलते हैं। तीन कन्याओं के पूजन से धर्म के साथ साथ अर्थ व काम की भी प्राप्ति होती है। चार कन्याओं की पूजा से राजयोग मिलता है। पांच कन्याओं के पूजन से विद्या धन की प्राप्ति होती है।
छह कन्याओं का पूजन छह तरह की सिद्धि मिलती है। सात कन्याओं का पूजन राज्य में राज का सुख मिलता है। आठ कन्याओं के पूजन से संपूर्ण संपदा की प्राप्ति होती है। नौ कन्याओं के पूजन से धरती के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।