नवरात्रि (Navratri 2022) के सातवें दिन महा सप्तमी (Maha Saptami) होती है। इस दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप कालरात्रि (Kalratri) की पूजा का विधान है। शक्ति का यह रूप शत्रु और दुष्टों का संहार करने वाला है।
मान्यता है कि मां कालरात्रि (Kalratri) ही वह देवी हैं जिन्होंने मधु कैटभ जैसे असुर का वध किया था। कहते हैं कि महा सप्तमी (Maha Saptami) के दिन पूरे विधि-विधान से कालरात्रि की पूजा करने पर मां अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने वाले भक्तों को किसी भूत, प्रेत या बुरी शक्ति का भय नहीं सताता। इस बार महा सप्तमी 02 अक्टूबर को है।
कालरात्रि का स्वरूप
शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि (Kalratri) का स्वरूप अत्यंत भयंकर है। देवी कालरात्रि का यह भय उत्पन्न करने वाला स्वरूप केवल पापियों का नाश करने के लिए है। मां कालरात्रि अपने भक्तों को सदैव शुभ फल प्रदान करने वाली होती हैं। इस कारण इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। देवी कालरात्रि का रंग काजल के समान काले रंग का है जो अमावस की रात्रि से भी अधिक काला है। इनका वर्ण अंधकार की भांति कालिमा लिए हुए है। देवी कालरात्रि का रंग काला होने पर भी कांतिमय और अद्भुत दिखाई देता है।
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भक्तों के लिए अत्यंत शुभ है मां का ये रूप
शास्त्रों में देवी कालरात्रि (Kalratri) को त्रिनेत्री कहा गया है। इनके तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं, जिनमें से बिजली की तरह किरणें प्रज्वलित हो रही हैं। इनके बाल खुले और बिखरे हुए हैं जो की हवा में लहरा रहे हैं। गले में विद्युत की चमक वाली माला है। इनकी नाक से आग की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दाईं ओर की ऊपरी भुजा से महामाया भक्तों को वरदान दे रही हैं और नीचे की भुजा से अभय का आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं। बाईं भुजा में मां ने तलवार और खड्ग धारण की है। शास्त्रों के अनुसार देवी कालरात्रि गधे पर विराजमान हैं।
मां कालरात्रि का पसंदीदा रंग और भोग
नवरात्रि का सातवां दिन मां कालरात्रि को सपमर्पित है। कालरात्रि को गुड़ बहुत पसंद है इसलिए महासप्तमी के दिन उन्हें इसका भोग लगाना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि मां को गुड़ का भोग चढ़ाने और ब्राह्मणों को दान करने से वह प्रसन्न होती हैं और सभी विपदाओं का नाश करती हैं। मां कालरात्रि को लाल रंग प्रिय है।
महा सप्तमी पूजा की विधि
दुर्गा पूजा में सप्तमी तिथि का काफी महत्व है। इस दिन से पूजा पंडालों में भक्तजनों के लिए देवी मां के द्वार खुल जाते हैं। महा सप्तमी के दिन कालरात्रि की पूजा इस प्रकार करें:
- पूजा शुरू करने के लिए मां कालरात्रि के परिवार के सदस्यों, नवग्रहों, दशदिक्पाल को प्रार्थना कर आमंत्रित कर लें।
- सबसे पहले कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता की पूजा करें।
- अब हाथों में फूल लेकर कालरात्रि को प्रणाम कर उनके मंत्र का ध्यान किया जाता है। मंत्र है- “देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्तया, निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां, भक्त नता: स्म विपादाधातु शुभानि सा न:”।
- पूजा के बाद कालरात्रि मां को गुड़ का भोग लगाना चाहिए।
- भोग लगाने के बाद दान करें और एक थाली ब्राह्मण के लिए भी निकाल कर रखनी चाहिए।
तंत्र साधना के लिए महत्वपूर्ण है सप्तमी
सप्तमी की पूजा अन्य दिनों की तरह ही होती है लेकिन रात में पूजा का विशेष विधान है। सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही जाती है। दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले लोगों के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस दिन तंत्र साधना करने वाले साधक आधी रात में देवी की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं। इस दिन मां की आंखें खुलती हैं। कुंडलिनी जागरण के लिए जो साधक साधना में लगे होते हैं महा सप्तमी के दिन सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं। देवी की पूजा के बाद शिव और ब्रह्मा जी की पूजा भी जरूर करनी चाहिए।