Janmashtami 2022: वृंदावन में एक मंदिर ऐसा भी है जहां ठाकुर जी (Lord Krishna) की रसोई तैयार करने के लिए पिछले 477 सालों से एक भट्टी लगातार जल रही है। सप्त देवालयों में से एक ठाकुर श्रीराधारमण मंदिर (Sree Radha Raman Temple) में दीपक से लेकर राज-भोग तक में इसका प्रयोग होता है।
वर्ष 1515 में भगवान कृष्ण (Lord Krishna) की नगरी वृंदावन आए चैतन्य महाप्रभु ने तीर्थों के विकास के लिए 6 गोस्वामियों को जिम्मेदारी सौंपी। इन्हीं में से एक थे दक्षिण भारत के त्रिचलापल्ली, श्रीरंगम मंदिर के मुख्य पुजारी के पुत्र गोपाल भट्ट गोस्वामी।
चैतन्य महाप्रभु के आदेश पर दामोदर कुंड की यात्रा से लाए गए द्वादश ज्योतिर्लिंग की वे वृंदावन में रहकर नृत्य प्रति पूजा करते थे। वर्ष 1530 में चैतन्य महाप्रभु ने गोपाल भट्ट को उत्तराधिकारी बनाया। चैतन्य महाप्रभु की लीला 1533 ई. में पूर्ण हुई।
1542 ई. में नृसिंह चतुर्दशी के दिन गोपाल भट्ट ने सालिगराम शिला के पास एक सांप को देखा, बाद में जब उसे हटाना चाहा तो वह शिला राधारमण के रूप में प्रकट हुई। 1542 ई. में वैशाख पूर्णिमा को इसकी मंदिर (Sree Radha Raman Temple) में स्थापना की गई। ठाकुर जी की सेवा पूजा के लिए जल एवं अग्नि की आवश्यकता पड़ने पर अरणि से गोपाल भट्ट द्वारा मंत्रों के मध्य अग्नि प्रविष्ट की गई थी।
सेवायत श्रीवात्स गोस्वामी ने बताया कि 10 फुट की यह भट्टी दिनभर जलती रहती है। कार्य पूरा होने पर रात को इसमें लकड़ियां डालकर ऊपर से राख उढ़ा दी जाती है जिससे अग्नि शांत न हो। अगले दिन पुन: उसमें उपले व लकड़ी डालकर अन्य भट्टियों को जलाया जाता है।
सेवायत आशीष गोस्वामी ने बताया कि रसोई में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश पूर्णत: वर्जित माना जाता है। सेवायत के शरीर पर सिर्फ धोती के अलावा और कोई अंग वस्त्र नहीं होना चाहिए। रसोई में एक बार जाने के बाद सेवायत पूरा प्रसाद बनाकर ही बाहर आ सकता है। किसी कारणवश उसे बाहर भी जाना पड़ा तो पुन: स्नान के बाद ही उसे मंदिर की इस रसोई में प्रवेश मिल पाता है।