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दिल्ली में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी की सरकार का तो केंद्र की भाजपा की अगुआई वाली सरकार और दिल्ली में उनकी ओर से नियुक्त उपराज्यपालों के साथ टकराव तो अंतहीन होता जा रहा है। ताजा विवाद में कथित भ्रष्टाचार की 22 जुलाई, 2022 को उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना के सीबीआइ जांच के आदेश देने से तेज हुआ है। उपराज्यपाल ने यह आदेश दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव नरेश कुमार की रिपोर्ट 8 जुलाई को मिलने के बाद दिया है। इस रिपोर्ट में आर्थिक गड़बड़ी होने के आरोप लगे हैं।

मुख्य आरोप कोरोना काल में शराब का निजी दुकानों को छूट देने से आबकारी विभाग को हुए 144.36 करोड़ रुपए के नुकसान से है। आबकारी नीति बनाना या उसमें बदलाव करना किसी भी राज्य सरकार का विशेषाधिकार होता है लेकिन इससे किसी एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के लाभ के लिए इसका उल्लंघन करने से सरकार के फैसले पर उंगली उठती है।

शराब तो एक मुद्दा है। तीन उपराज्यपाल बदलने के बावजूद दिल्ली सरकार से केंद्र सरकार का टकराव कम नहीं हुआ। चार जुलाई, 2018 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने चार अगस्त, 2016 के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि गैर आरक्षित विषयों में दिल्ली की सरकार फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है।

हाई कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली सरकार का मतलब उपराज्यपाल है। तब तक दिल्ली सरकार की उपराज्यपाल से इस कदर तनातनी बढ़ गई थी कि उपराज्यपाल ने आरक्षिक विषयों पर सरकार और विधानसभा में चर्चा करानी तक बंद करवा दी थी। उसके बाद पिछले साल मार्च महीने में संसद के दोनों सदनों से ‘राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन)-2021’ विधेयक पास करवाकर उपराज्यपाल को पहले से ज्यादा ताकतवर बना दिया। इतना ही नहीं दिल्ली की मौजूदा आम आदमी पार्टी की सरकार और उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र की सरकार से चल रही लड़ाई ने दिल्ली को विधानसभा बनाने वाले साल 1993 में फिर से पहुंचा दिया गया था।

उपराज्यपाल का अधिकारियों पर रहता है नियंत्रण

दिल्ली के विधान में केवल केंद्र शासित प्रदेश होने की समस्या नहीं है, अनेक विषयों पर स्पष्टता नहीं है। आप की सरकार में आने के बाद से ही उनका आरोप रहा है कि उनकी आला अधिकारी सुनते ही नहीं। वे उपराज्यपाल की ही सुनते हैं। इतना ही नहीं जिन अधिकारियों को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने मुख्य सचिव बनवाया, उनमें से नवंबर 2018 में मुख्य सचिव बने विजय कुमार देव के अलावा हर मुख्य सचिव से सरकार की लड़ाई होती रही है। इसी 20 अप्रैल को मुख्य सचिव बने नरेश कुमार ने आबकारी नीति पर प्रतिकूल रिपोर्ट उपराज्यपाल को देकर दिल्ली सरकार से टकराव मोल लिया है।

केंद्र शासित प्रदेश होने के कारण दिल्ली का अधिकारियों का कोई काडर नहीं है। केंद्रीय गृह मंत्रालय के माध्यम से उपराज्यपाल का उन पर नियंत्रण है। 2013 में बहुमत न होते हुए आप ने सरकार बनाई और नियम से परे जाकर जन लोकपाल बिल विधानसभा में पेश करने की कोशिश की। तब के उपराज्यपाल नजीब जंग ने इसको पेश करने नहीं दिया तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद दिल्ली में पहली बार राष्ट्रपति शासन लगा और आप से उपराज्यपाल की लड़ाई ने सारी सीमाएं तोड़ दी।

दोबारा 2015 में चुनाव होने पर आप भारी बहुमत से सरकार में आई लेकिन उपराज्यपाल से लड़ाई जारी रही। उपराज्यपाल ने आप सरकार के फैसले से जुड़ी चार सौ फाइलों की जांच पूर्व सीएजी वीके शुंगलू से करवाई। कहते हैं कि कारवाई न होने पर उन्होंने 2016 के आखिर में इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह पर अनिल बैजल उप राज्यपाल बने। उनसे पूरे समय आप सरकार की लड़ाई चलती रही। इस 23 मई को पहली बार विनय कुमार सक्सेना पहले गैर नौकरशाह उपराज्यपाल बनाए गए। पहले ही दिन से उनसे आप सरकार का टकराव शुरू हुआ। अब आबकारी मामले में सीबाआइ जांच के आदेश देने के बाद तो फिर से टकराव की सारी सीमाएं टूटती दिख रही है।


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